
स्येद अजमेर खुद्दाम हज़रात के हकूक व फ्राइज़
कलीद बरदारी ( Key Holders )
हकूक और फ़राइज़ का चोली दामन का साथ है जेसा के ( J . A SALMOND ) का मशुर कॉल है
“ Rights and duties are correlative to each other i.e. where there is right, there is a duty also vice-versa ”
चुनाचे स्येद अजमेर खुद्दाम साहेबान अपने हकूक के पेश नज़र फ़राइज़ भी बा खूबी अंजाम देते आरहे और इंशाल्लाह क़यामत तक देते रहेंगे.
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मरासिमे आस्ताना आलिया और स्येद अजमेर ( खुद्दाम साहेबान )
स्येद अजमेर ( खुद्दमे ख्वाजा ) importance एहमियत और उनकी खिदमत कलीद बरदारी से भी वाबस्ता है जो उनके हकूक का जज़वे लाइनिफ्क है 1949 में तह्किकाती कमेटी के सवाल नामे का जवाब नामा साहेब ज़ादा मौलाना ख्वाजा अब्दुल बारी मानी अलेरेह्मा ने लिखा था , जिसमें खिदमत कलीद बरदारी पर मोह्किकाना अंदाज़ से रौशनी डाली गयी हे उसे मन व अन पेश करना ज़रूरी हे ताकि कारीन कराम को हकूक कम हक्का अगाई होजाए.
कलीद बरदारी
स्येद अजमेर खुद्दाम ख्वाजा ने गुम्बद शरीफ की तामीर के बाद ही उसके अवकात बसत व कुशाद और कलीद बरदारी ( आस्ताना अक़दस हुजुर स्येदना ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) की चांबिया ) के क़वायिद महमूद खिलजी के एहेद में वाजे किये और खानदानी अफराद स्येद अजमेर खुद्दामे ख्वाजा ने इस कलीद बरदारी को आपस में तकसीम करलिया, उस वक्त न दीवान न मुतवल्ली थे, ना दरगाह शरीफ से मुतालिक कोई वक्फ था और ना ही कोई कमेटी वाजे रहे के तुज्के जहाँगीरी में सिवाए स्येद अजमेर मुजविरिन खुदामे ख्वाजा के और किसी का ज़िक्र नहीं हे, वाजे रहे के ना मालूम वक्त से खाना ए काबा कुरेश के एक मखसूस काबिले की तहवील में रहा, जिसके पास खान काबा की चाबी रहती थी . ( असनादअल अस्नादिद सफा:4-210 )
Haykal: The life of Muhommad ( Tr Reprint, Delhi, 1976) pp407, 413, Ashort History of Aurangzeb” s Reign, op.cit; Mughal Administration, op.cit
एहदे शाहजहानी मैं इस तकसीम से मुतालिक जो पंचायिती त्स्फिया हुवा है , उस कागज़ का उन्वान ये है, तकसीम हस्स आमदानी कलीद बरदारी ह्द्र्त......... बहामी मुजावरान ह्द्र्त...... ये कागज़ 28 जुलुस शाह्जानी का लिखा हुआ है और तारीख 29 ज़िल्हज दर्ज हे. शाहजां बादशाह 25 ज़िल्ह्ज 1064 ह मुताबिक़ 28 ओक्टोबर 1654 को अजमेर आये थे और 15 मुहोर्रम 1065 ह को अजमेर से मुराजत शाहाना अमल में आई थी, उस हाजरी के मोके पर शाह्जां ने दरगाह शरीफ में 10 हजार रुपये नज़राना दिया था. ( शाहजहा नामा कलमी वर्क : 156 )
इस नज़र नियाज़ के बाद ही बादशाह की मोजुदगी अजमेर के ज़माने में खुद्दाम ख्वाजा ने पंचायिती तरीके पर हस्ब ज़ेल त्सफिया किया. हफ्ता के हर दिन का एक मुशादला ( नुमायिंदा ) बनाया हर मुशादले के साथ ( 26 ) अफराद हिस्से दार करार पाए और इस तरह कुल ( 189 ) अफराद पर कलीद बरदारी तकसीम हुई इन सब हिस्से दारों के नाम भी इस दस्तावेज़ में म्र्कुम हैं .
इस त्सफिये में बादशा या मकामी हुकुमत या मुतवली दरगाह की कोई मुदाखिल्त नही थी , इस दस्तवेज़ से ये साबित हे के महमूद खिलजी के एहद हुकुमत से शाहजहाँ की हुक्मरानी के ज़माने तक भी तकसीम कलीद बरदारी का तरीका यही था , अल बतता स्येद अजमेर खुदामे ख्वाजा की औलाद बदती रही और कलीद बरदारी में नाम शामिल होते गए , हर खादिमे ख्वाजा का नम्बर आता है कलीद बरदारी का ( कलीद बरदारी key holders ) जवाब नामा सफा 82 .
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Ajmer Sharif Urs 2025 Full Date List ke mutabiq, Urs Mubarak 22 December se 30 December tak chalega.