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syed ajmer sharif dargah

​स्येद ज़ादगान खुद्दामे ख्वाजा दरगाह अजमेर शरीफ 

स्येदना  ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ)  के  खादिम के लग्वी  मायिने हैं खिदमत करने वाला, यानी खुद्दामे ख्वाजा मोरुसी खादिम हैं , जेसे औलाद अपने वालदैन की खिदमत करती हे उस्सी तरह से खुद्दामे ख्वाजा गुज़िश्ता 850 सालो से आस्ताना ए  अक़दस हुजुर ग़रीब नवाज़ (र.अ) की खिदमत का फ़रीज़ा अंजाम देते आरहे हैं , नेज़ आस्ताना ए अक्दस की क़लीद बरदारी का हक भी खुद्दाम साहेबान को हासिल हे , जिस तरह खानाए काबा की कलीद बरदारी ( चाबी रखने का हक ) क़दीम ज़माने से एक मख्सूस खानदान के सपुर्द हे और फ़तेह मक्काह के बाद भी हुजुर नबी करीम ( स.अ.व )  ने खानाए काबा की चाबी अपनी त्हैवील में लेकर दुबारा उस्सी खानदान के सरबराह हजरत उस्मान बिन तलाह को ये कह कर देदी के ये चाबी ( कलीद ) क़यामत तक तुम्हारे खानदान मैं रहेगी और जो तुम से ये चाबी छीनेगा वो ज़ालिम होगा. 

(रहमतअलील आलमीन, जिल्द 1 सफा 114-115, काजी मुहोम्मद सुलेमान मंसूर पूरी ऐतेकाद पब्लिशिंग हाउस देल्ही )

सऊदी अरब का बादशाहे वक्त अपने आपको खादिम अल हरमैन शरिफैन कहलाने मैं फ़ख्र् महसूस करता हे , ( अल्हम्दुलिल्लाह )  दरबार ग़रीब नवाज़ ( र.अ) मैं खादिम ही क़लीद बरदार हैं.

​खादिमे ख्वाजा के मोरुसे आला ख्वाजा स्येद फखरुद्दीन गर्देज़ी चिश्ती  ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के पीर भाई नस्बी भाई , खलीफा और खादिमे ख़ास भी थे, उन्ही की औलाद खादिम ह्दरात के लिए मुल्हायेज़ा हो, राजस्थान हाई कोर्ट का ये फेसला , वाज़े होके अजमेर सूबा राजस्थान में शामिल हे ,

" KHADIMS " RELATIONS WITH THE SHRINE IS NOT ONLY ANCIENT BUT INTIMATE

AIR 1959 - RAJASTHAN  HIGH COURT,  P - 177 = RAJASTHAN LAW WEEKLY P-503

तरजुमा , खुद्दाम का तालुक आस्तानये अक़दस से सिर्फ क़दीमी ही नही बल्कि करीबी भी हे

खुद्दाम ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ)  को साहेबज़ादा, गद्दी नशीन, स्येद साहब , शाह साहब , मौलिम , मुजाविर , और बापू , पीर साहब , और कश्मीर के लोग रिशी कहते हे इन सब नामो से खुद्दामे ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) को पुकारा जाता हे ,  मगर खुद्दाम ख्वाजा अपने आपको खादिम ,  ख़ाक नशीन और जारुब कश कहने में फखर महसूस करते हैं .

हरके खिदमत करदा व मखदूम शुद 

हकीकत ये है के आस्ताने अक़दस मैं 12 महीने शब व रोज़ होने वाली रसुमात के अलावा दुआ गोई का फ़रीज़ा खुद्दाम ह्दरात ही ज़माने क़दीम से पुश्तेनी हेसियत से अंजाम देते आरहे हे, ज़ायेरीन को ज़ियारत कराने का शरफ सिर्फ खुद्दाम  ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) को ही हासिल हे और उन्ही के तवासुल से ज़ायेरीन फूल चादर , अतर और नजरो नियाज़ भी मजारे अक़दस पर पेश करते हैं ,  तारीख व मारुफ़ अकबरी और जहाँगीरी देगों मैं डाली जाने वाली नज़ुरात के भी कानूनी तोर खुद्दाम ख्वाजा ही मुस्तहक हैं ,  और रुबा रुए आस्ताना आलिया आहता ए नूर मैं होने वाली जुमला मज़हबी तक्रिबात महफ़िल और दीगर प्रोग्राम पूरा साल खुद्दाम हजरात और हमारी कम्युनिटी अंजुमन स्येद  ज़ादगन की जानिब से बड़े तुज्क व एहतशाम के साथ मुनाकीद  करी जाती हैं , इन् मोको पर बड़े बड़े लंगरों के नजराने पेश किये जाते हैं और ज़ायरीन, गुरबा , फुकरा और मसाकीन मैं नियाज़ तकसीम की जाती है, 

चुनाचे हर बेटा अपने बाप की , हर शागिर्द अपने उस्ताद की , हर मुरीद अपने पीर की , हर मोताकीद उस बुज़ुर्ग की खिदमत करता हे , जिस से उसे एतेकाद व इखलास होता है.

​इसलिए हर बेटा अपने बाप का , हर शागिर्द अपने उस्ताद का , हर मुरीद अपने पीर का , और हर मोताकीद अपने मोताकीद अलेए का खादिम होता है  ( जवाब नामा सफा 139 )

خود حدرت  خواجہ  بزرگ غریب  نواز  کا یہ  ارشاد  ،  سیرلاولیا،  میں  مرقوم ہے

खुद हदरत ख्वाजा बुज़ुर्ग ग़रीब नवाज़ (र.अ) का ये इरशाद हे ( सेरुल अवलिया ) मैं मर्कुम हे 

بست   سال ملازم خدمت     ایشان بودم چنان که یک

ساعت نفس   را از    خدمت آن بزرگ راحت نه دادم  و در

سفر و حضر جامه خواب خواجه من می بردم

​ینی  میں   بیس  سال پیرو مرشد کا اس طرح ملازم خدمت رہا کہ حضرت کی خدمت سے گھڑی بھر کے لئے آرام نہیں لیا اور سفروحضر میں حضرت کا بستر میں اٹھاتا تھا۔

यानी में 20 साल पीरो मुर्शिद का इस तरह मुलाजिम खिदमत रहा के हदरत की खिदमत से घड़ी भर के लिए आराम नहीं लिया और सफ़र व हज़र मैं हदरत का  बिस्तर मैं उठाता था 

جواب نامہ،ص:۱۴۰، اردو ترجمہ ”سیرالاولیاء از ڈاکٹر عبد اللطيف، ایم۔ اے۔، پی۔

ایچ ۔ڈی، مطبوعہ: دہلی،۱۹۹۰ء میں:۵۵) 

हुजुर स्येदना ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) ने अपने खादिमे ख़ास हदरत ख्वाजा स्येद फखरुद्दीन गर्देज़ी चिश्ती (रअ) के बारे मैं बारहाया ये फरमाया

( फ़खरे माँ फखरुद्दीन अस्त )

यानी फखरुद्दीन पर हमे फख्र्र हे

فخرے ما فخرالدین است

गुलज़ारे अबरार मैं हदरत ख्वाजा स्येद फखरुद्दीन ग्र्देज़ी चिश्ती     (  खुद्दामे ख्वाजा के मोरुसे आला ) की निस्बत ये अलफ़ाज़ भी लिखे है

दर खिदमत गारी व परिस्तारी पीर पाया बंदगी दाश्त 

यानी अपने पीर की खिदमत गुज़ारी और परिस्तारी मैं बंदगी का बुलंद दर्जा रखते थे

در خدمت گاری و پرستاری پیر پایا بندگی داشت  

हदरत ख्वाजा स्येद फखरुद्दीन गर्देज़ी चिश्ती (रअ) ने अपनी तमाम उम्र हदरत स्येदना ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) की खिदमत मैं गुजारदी और जब 632 हिज्री मुताबिक़ हुजुर ग़रीब नवाज़     रेहलत के बाद सरकार ख्वाजा ग़रीब नवाज़ (र.अ) के मज़ार ए अक्दस पर बेठ गए और आखरी दम तक कब्र शरीफ की खिदमत अंजाम दी ( गुलज़ारे अबरार फ़ारसी , सफा 38 )   और आपके बाद आपकी औलाद ने इस खिदमत को सरमाया ए इज्ज़त बनाया जिसका सिलसिला ता हाल कायम है .

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