Teachings of Khwaja Moinuddin Chishti (R.A)
दूसरी मज्लिस गुस्ले जिनाबत
हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह बयान करते हैं कि जुमेरात के दिन सैय्यदुना सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ की कदमबोसी की दौलत नसीब हुई। उस वक्त जिनाबत ( वह नापाकी जिस से गुस्ल वाजिब होता है) से मुतअल्लिक गुफ्तगू होरही थी,
मौलाना बहाउद्दीन बुख़ारी और मौलाना शहाबुद्दीन मुहम्मद बगदादी (कुद्दि स सिर्रहुमा) हाज़िरे ख़िदमत थे (हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ ने) ज़बाने मुबारक से फरमाया कि इन्सान के हर बाल के नीचे जिनाबत है लिहाजा गुस्ले जिनाबत तब ही मुकम्मल हो सकता है जब बदन के हर बाल की जड़ में पानी पहुँच जाए अगर एक बाल भी खुश्क रह गया तो केयामत के दिन वह बाल उस से झगड़ेगा ।
जुनुबी का मुंह और पसीना पाक है
फिर फरमाया, फतावा ज़हीरिया,, में लिखा हुआ है कि आदमी का मुंह पाक रहता है चुनाँचे जुनुबी (जो शख़्स हालते जिनाबत में हो) जिस बरतन से पानी पिए वह नापाक नहीं होता। इसी तरह
जुनुबी मर्द या हाइज़ा औरत का मुंह नापाक नहीं होता ।.. .. फिर फरमाया, एक मरतबा रसूले काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से एक सहाबी ने सवाल किया या रसूलल्लाह !
अगर किसी शख़्स को नापाकी की हालत में (बवहे गरमी) पसीना आजाए और उस से उस के कपड़े तर होजाएं तो क्या वह कपड़े नापाक हो जाएंगे। ?.. हुजूर ने इरशाद फरमाया नहीं। सरकारे ख़्वाजा ने आगे
इरशाद फरमाया कि इन्सान का थूक भी पाक है अगर किसी के
बदन या कपड़े को लग जाए तो वह नापाक नहीं होता।..
हलाल गुस्ल का अज्र
Teachings of Khwaja Moinuddin Chishti, उस के बाद सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ कुद्दि स सिर्रहू ने फरमाया कि, मैं ने अपने पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा उस्मान हारवनी कुद्दि स सिहू से सुना है कि जब हज़रत आदम अलैहिस्सलाम जन्नत से दुन्या में आए और पहली बार गुस्ले जिनाबत की हाजत हुई तो हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने हाजिरे खिदमत होकर अर्ज़ की कि उठ कर गुस्ल कीजिए। जब आप ने गुस्ल फरमाया तो बहुत फरहतो सुरूर का एहसास हुआ फिर आप ने जिब्रईले अमीन से पूछा कि इस गुस्ल का कुछ अज भी है। ?
जवाब मिला कि इस गुस्ल के एवज़ आप के जिस्म के हर बाल केलिए आप को एक साल की इबादत का सवाब मिलेगा। और आप के बदन से गिरने वाले पानी के हर कत्रे से एक फिरिश्ता पैदा फरमाएगा जो रोज़े केयामत तक इबादते इलाही बजा लाता रहेगा और उन तमाम इबादतों का सवाब आप को अता किया जाएगा। इसी तरह इस गुस्ल का सवाब आप की औलाद केलिए भी है बशर्ते कि वह मोमिन हों और उन का गुस्ल हलाल सोहबत के बाद हो ।
हराम गुस्ल का वबाल
जब सरकारे ख्वाजा ने यह बात की तो आबदीदा होगए और फरमाया कि जो शख़्स सोहबते हराम (ज़िना) के बाद गुस्ल करेगा तो उस के बदन के हर बाल के बदले एक साल के गुनाह उस के नामए आअमाल में लिखे जाएंगे और उस के बदन से टपकने वाले पानी के हर कत्रे से अल्लाह तआला एक शैतान पैदा फरमाएगा और जो बदियाँ उस शैतान से सरज़द होंगी वह उस शख़्स के नामए आअमाल में लिखे जाएंगे।
राहे शरीअत पर चलने वालों की
इब्तेदा व इन्तेहा
फिर फरमाया कि जो शख़्स शरीअत के अहकाम की पूरी पाबन्दी करता है वह तरीकत की मन्जिल पर पहुँच जाता है और अगर वह तरीक़त के तमाम शराइत भी पूरी करलेता है तो माअरिफत की मन्जिल में पहुँच जाता है अगर माअरिफत की राह पर साबितकदमी से चलता है तो मरतबए हकीकत तक पहुँच जाता है फिर उस की हर आरजू पूरी होजाती है।
नमाज़ एक अमानत है
सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ ने अचानक अपना मौजूओ सुखन नमाज की तरफ फेर दिया और फरमाया कि नमाज़ एक अमानत है जो अल्लाह तआला ने अपने बन्दों के सुपुर्द फरमाई है। तो बन्दों पर वाजिब है कि अमानत में किसी किस्म की खेयानत न करें।
फिर इरशाद फरमाया कि इन्सान जब नमाज़ अदा करे तो ताअदीले अरकान में कमी न करे याअनी रुकूअ, सुजूद और हर रक्त कमा हक्कुहू बजा लाए और सहीह तरीके से नमाज़ अदा करे ।
हुकूके नमाज़ की अदाइगी
फिर सरकारे ख्वाजा ने इरशाद फरमाया कि किताब सलाते मस्ऊदी में लिखा है कि जो शख्स नमाज़ का पूरी तरह हक अदा करता है (याअनी वक्त की पाबन्दी के साथ खुशूअ, खुजूअ और सहीह तरीके से नमाज अदा करता है) तो फिरिश्ते उस की नमाज को आस्मान की बलन्दियों पर लेजाते हैं। उस नमाज़ से एक ख़ास किस्म का नूर पैदा होता है, उस केलिए अफ्लाक के सौ दरवाजे खोल दिए जाते हैं फिर वहाँ से उस नमाज़ की अर्श के करीब लेजाते हैं वहाँ वह बारगाहे एज़दी में सज्दारेज़ होती है और अपने अदा करने वाले के हक में दुआए बख्शिश करती है।
उस के बरअक्स जो शख़्स नमाज़ बेतवज्जुही से अदा करता है उस की नमाज उस के मुंह पर मार दी जाती है और कहा जाता है कि तू सब कुछ ज़ाएअ कर दिया।.. उस के बाद आप ने एक हदीस बयान फरमाई कि...सरवरे कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक शख़्स को इस हुजूर तरह नमाज़ पढ़ते हुए देखा कि रुकूओ सुजूद सहीह तरीके से नहीं अदा कर रहा था जब वह नमाज़ से फारिग हुआ तो सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पूछा, ऐ शख्स! तू कब से इस तरह से नमाज़ पढ़ रहा है। ?,,
उस ने जवाब दिया, या रसूलल्लाह शुरूअ से (याअनी जब
से नमाज शुरू की है इसी तरह नमाज़ पढ़ता हूँ।.. रहमते दोआलम की आँखें पुरनम होगई और आप ने इरशाद फरमाया, अफ्सोस । तू ने आज तक कुछ नहीं किया और अगर तू इसी हालत में मर जाए तो मेरी सुन्नत पर नहीं मरेगा ।,,
उस के बाद सरकारे ख़्वाजा ने फरमाया कि मैं ने ख़्वाजा उस्मान हारवनी रहमतुल्लाहि तआला अलैह से सुना है कि केयामत के दिन जो मुसलमान नमाज की ज़िम्मेदारी से छूट गया वही बारगाहे इलाही में सुर्खरू होगा वरना जहन्नम का एंधन बनेगा।..
हिकायत
फिर सरकारे ख़्वाजा ने एक हिकायत बयान फरमाई कि एक मरतबा मैं शाम के करीब एक शहर में मुकीम था उस शहर से बाहर एक गार था जिस में एक बुजुर्ग शैख औहद मुहम्मद अब्दुलवाहिद ग़ज़नवी रहते थे उन के जिस्म की लागरी का यह आलम था कि बदन की एक एक हड्डी शुमार की जासकती थी याअनी सिर्फ चमड़ा था गोश्त का नामो निशान नहीं था मैं मुलाकात की गरज से उन के पास गया तो देखा कि जाए नमाज़ पर बैठे हैं और दो शेर उन के सामने खड़े हैं।
मैं शेरों के खौफ से ठिठक कर बाहर ही खड़ा रह गया। शैख गज्नवी की नज़र जब मुझ पर पड़ी तो फरमाया, अन्दर आजाओ डरो मत।,, मैं गार के अन्दर दाखिल हुआ और शैख को सलाम करके अदब से बैठ गया। आप ने फरमाया,अगर तुम किसी को नुकसान या अज़िय्यत • पहुँचाने का इरादा न करो तो तुम्हें भी कोई चीज़ तकलीफ या नुक्सान नहीं पहुँचा सकती। जो शख्स खुदा से डरता है उस से हर चीज़ डरती है शेर क्या चीज़ है।
फिर मुझ से फरमाया, कहाँ से आए हो ।,, मैं ने कहा बगदाद से, फरमाया तुम्हारा आना मुबारक हो। दुर्वेशों की खिदमत किया करो तुम्हें उस का अच्छा फल मिलेगा। और मेरी सुनो, मैं कई साल से तर्क दुन्या करके इस गार में गोशागीर हूँ और तीस साल से एक चीज़ के खौफ से हमेशा रोता रहता हूँ।,,
मैं ने पूछा, वह क्या चीज़ है। ?.. शैखे गुज्नवी ने फरमाया, वह नमाज़ है। हर वक्त मुझे यही
खौफ दामनगीर रहता है कि नमाज की कोई शर्त फौत न होजाए क्यूँकि उस के नतीजे में सारी इताअते इलाही मेरे मुंह पर मार दी जासकती है। ऐ दुर्वेश ! अगर तुम ने नमाज़ का पूरा हक अदा कर लिया तो वाकई बड़ा काम कर लिया वरना यह समझ लो कि सारी उम्र तुम ने गफलत में जाएअ कर दी। खुदा के नज़दीक तर्के नमाज़ से बढ़कर कोई गुनाह नहीं और तारिके नमाज़ से बढ़कर खुदा का कोई दुशमन नहीं।
दोजख का पेट वही लोग भरेंगे जो नमाज़ पूरे शराइत के साथ अदा नहीं करते और वक़्त बेवक़्त नमाज़ पढ़ते हैं। मुझे तुम जो हड्डियों का ढाँचा देख रहे हो इस का सबब यही है कि मैं हर वक्त इस बात से खौफजदा रहता हूँ कि मैं नमाज़ का हक़ अदा कर पाया हूँ या नहीं।
उस के बाद शैखे ग़ज्नवी ने मुझे एक सेब अता फरमाते हुए नमाज़ का हक़ अदा करने की मजीद ताकीद फरमाई।
दीन का सुतून
यह हिकायत बयान फरमाते हुए सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज की आँखें पुरनम होगई और फिर आप ने फरमाया, दोस्तो ! नमाज़ दीन का सुतून है और अरकाने नमाज, नमाज़ के सुतून हैं। सुतून खड़ा रहे तो घर सलामत रहता है और अगर सुतून गिर पड़े तो घर भी मुन्हदिम हो जाता है। चूँकि नमाज़ दीन का सुतून है इस लिए जिस शख़्स की नमाज़ के फराइज़, सुनन और वाजिबात में खलल पड़ा गोया उस के दीन में फर्क पड़ा।
केयामत के दिन हिसाब के पचास मकामात
• सिलसिलए बयान में आगे इरशाद फरमाया कि सलाते मस्ऊदी सैय्यदी सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ कुद्दि स सिहू ने इस की शरह, वास्ता,, में इमाम ज़ाहिद रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने तहरीर फरमाया है कि अल्लाह तआला ने नमाज़ से जियादा किसी और इबादत की ताकीद नहीं फरमाई और सैय्यिदुना इमाम जाअफर सादिक रदियल्लाहु तआला अन्हु का इरशादे गिरामी है।
कि कुरआने हकीम में अल्लाह तआला ने अपने बन्दों को जाबजा नसीहतें फरमाई हैं और उन के लिए हर जगह मुन्फरिद पैरायए बयान इख्तियार किया है लेकिन अक्सरो बेशतर नमाज़ की ताकीद भी साथ में मौजूद है और हजरत सैय्यदुना माअरूफ कर्खी कुटि स सिद्दू की तफ्सीर के मुताबिक केयामत के दिन बन्दों का हिसाब पचास मकामात पर होगा और पचास मुख्तलिफ चीजों से मुतअल्लिक हिसाब होगा जो बन्दा जिस मन्जिल पर फेल होगा वहीं से दोजख की तरफ भेज दिया जाएगा
और तमाम मकामात पर पास होजाने वालाबन्दा ही जन्नत का मुस्तहक होगा। उन में पहली मन्जिल में ईमान से मुतअल्लिक सुवाल होगा अगर उस का सहीह जवाब देदिया दूसरी मन्जिल पर नमाज और उस के अरकानो हुकूक के बारे में सुवाल किया जाएगा अगर बन्दा उस में भी पूरा उतर गया तो तीसरी मन्जिल पर रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुव्रतों पर अमल के बारे में पुछा जाएगा अगर बन्दा अदाए सुनन के हिसाब से ओहदा बरआ होगया तो सुब्हानल्लाह वरना मोअक्किलों के साथ हुजूर आकाए कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रूबरू पेश किया जाएगा और कहा जाएगा कि यह शख्स आप की उम्मत से है लेकिन इस ने आप की सुन्नतों के अदा करने में कोताही बरती है।..
उस के बाद सरकारे ख्वाजा ने इरशाद फरमाया कि ..अफ्सोस उस शख्स पर जो केयामत के दिन रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने शर्मिन्दा होगा फिर ऐसे शख्स का ठिकाना कहाँ होगा.
तीसरी मज्लिस
सरकारे ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि । तआला अलैह फरमाते हैं कि बुध के दिन सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज की कदमबोसी का शरफ हासिल हुआ उस मज्लिस में मेरे अलावा मौलाना बहाउद्दीन बुखारी, ख्वाजा अहदुद्दीन किरमानी और
समरकन्द के छह दुर्वेश भी हाज़िरे खिदमत थे गुफ्तगू का आगाज़ औकाते नमाज़ की पाबन्दी के मौजूअ पर हुआ।
नमाज़ की अदाइगी में ताख़ीर पर अफ्सोस
सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ से सुवाल किया गया कि, ऐसे शख्स से मुतअल्लिक क्या हुक्म है जो जान बुझ कर फर्ज़ नमाज़ की अदाइगी में इतनी ताख़ीर करदे कि वक़्त गुज़र जाए और फिर कज़ा अदा करे ।,, ?
आप ने इरशाद फरमाया, वह कैसा मुसलमान है जो नमाज़ वक्त पर नहीं अदा करता ऐसे लोगों के मुसलमान होने पर सद हजार अफ्सोस जो अल्लहा तआला की बन्दगी में कोताही करें।..
फिर फरमाया कि मेरा गुज़र एक ऐसे शहर से हुआ जहाँ नमाज़ का वक़्त आने से पहले ही लोग नमाज़ केलिए मुस्तइद होकर खड़े होजाते। मैं ने उन से इस का सबब पूछा तो बताया कि,हमारी आरजू होती है कि नमाज़ का वक़्त आते ही फौरन अदा करलें अगर हमारी सुस्ती से नमाज़ का वक्त निकल गया तो केयामत के दिन अपने आका व मौला रसूले दोआलम सल्लल्ला तआला अलैहि वसल्लम के सामने शर्मसार होंगे क्यूँकि हुजूर का इरशादे गिरामी है,,अज्जिलू बित्तौबति कब्लल मौति व अज्जिलू बिस्सलाति क़ब्लल फौति,, याअनी मौत के आने से पहले तौबा करने जल्दी करो और वक़्त गुज़र जाने से पहले नमाज़ केलिए जल्दी करो ।
फिर इरशाद फरमाया कि मैं ने किताब वासिआ में देखा है नीज़ अपने उस्ताज़े गिरामी मौलाना हुस्साम मुहम्मद बुखारी रहमतुल्लाहि तआला अलैह से रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की यह हदीसे मुबारक सुनी है, मिन अक्बरिल कबाइरि युज्मउ बैनस्सलातैन,, याअनी कबीरा गुनाहों में बड़ा गुनाह यह है कि (नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने पर) दो नमाजें मिलाकर पढ़ी जाएं।..
नमाज़ केलिए मस्नून औकात
सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज ने फरमाया कि मैं ने पीरो मुर्शिद हजरत सैय्यदुना उस्माने हारवनी कुद्दि स सिह् से बरिवायते हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु यह हदीसे पाक सुनी है। आप ने फरमाया है कि मैं तुम्हें मुनाफिकीन की
नमाज़ का हाल बताऊँ कि कैसी होती है। ?,, सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम ने अर्ज़ कियाहाँ
या रसूलल्लाह! हमारे माँ बाप आप पर कुरबान ज़रूर बताइये।..' हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि,जो शख्स अस्र की नमाज़ में (जान बुझ कर) इतनी ताखीर करे कि सूरज की रौशनी धीमी पड़ जाए तो वह शख़्स गुनहगार है .... सहाबा ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह इस का वक्त भी मुय्यन फरमा दीजिए । हुजूर ने फरमाया नमाज़े अस्र का वक़्त उसी वक्त तक है।
जब तक सूरज खूब रौशन रहे और उस का रंग ज़र्द न होजाए।
यह हुक्म गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों केलिए है।
उस के बाद सरकारे ख़्वाजा ने फरमाया कि, मैं ने फिक्ह की किताब, हिदाया,, में शैखुल इस्लाम हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारवनी रहमतुल्लाह तआला अलैह के हाथ की तहरीर करदा यह हदीसे पाक देखी है, अस्फिरू बिल्फज्रि लिअन्नहू आअजमु बिलअजिर,, याअनी सुबह की नमाज़ सफेदी में अदा करो इस लिए कि उस में बहुत ज़ियादा अज्र है ।,,
जुहर की नमाज़ में सुन्नत यह है कि मौसमे सर्मा में जिस वक़्त साए ढलें उसी वक़्त अदा कर ली जाए और मौसमे गर्मी में दोपहर के बाद जब हवा में खुन्की पैदा होजाए उस वक्त पढ़े हुजूर ने इरशाद फरमाया है कि मौसमे गर्मी में नमाज़े जुहर ठंडे वक़्त में पढ़ा करो क्यूँकि गर्मी की शिद्दत जहन्नम की साँस है ।,,
हिकायत
उस के बाद सरकारे ख़्वाजा ने यह हिकायत बयान फरमाई कि,,एक बार हज़रत ख़्वाजा बायजीद बुस्तामी रहमतुल्लाह तआला अलैह से सुबह की नमाज़ कज़ा होगई तो उस के गम में आप इतना रोए और इतनी आहो जारी की कि बयान से बाहर है। गैब से आवाज़ आईऐ बायजीद ! तू इस क़दर आहो ज़ारी क्यूँ कर रहा है अगर सुबह की एक नमाज़ फौत होगई तो हम ने तेरे नामए आअमाल में हज़ार नमाज़ों का सवाब लिख दिया है।...
जिस की नमाज़ नहीं उस का ईमान नहीं
फिर इरशाद फरमाया कि मैं ने तफ्सीरे महबूबे कुरैशी, में पढ़ा है कि जो शख़्स नमाजे पंजगाना हमेशा वक़्त पर अदा करेगा तो केयामत के दिन उस की नमाज़ें उस की रहनुमाई करेंगी और जो शख़्स नमाज़ नहीं पढ़ता वह बेईमान है क्यूँकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है,ला ईमा न लिमल्ला सला त लहू. याअनी जिस की नमाज़ नहीं उस का ईमान नहीं ।..
और मैं ने मुर्शिदी हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारवनी कुद्दि स सिहू से सुना है कि तफ्सीरे इमाम ज़ाहिद, में आयते मुबारका ..फवैलुल्लिल मुसल्लीनल्लज़ी न हुम अन सलातिहिम साहून,, (याअनी वैल है उन नमाज़ियों केलिए जो अपनी नमाज़ में सुस्ती करते हैं) की तफ्सीर में लिखा है कि वैल, जहन्नम का एक कुआँ (या दोज़ख का एक जंगल) है जिस में हवलनाक अज़ाब रखा गया 1 ये नमाज़ में सुस्ती करने वालों केलिए मख़्सूस
फिर फरमाया कि एक मरतबा ख़लीफए दोम हज़रत उमर फारूके आअज़म रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरिब की नमाज़ अदा करने में ताख़ीर होगई कि आस्मान पर सितारे नज़र आने लगे। आप सख़्त पशीमान और गमनाक हुए और उसी वक़्त उस ताखीर के कफ्फारे में एक गुलाम आज़ाद कर दिया। क्यूँकि हुक्मे शरअ यह है कि सूरज डूबते ही फौरन ही मरिब की नमाज़ पढ़ ली जाए उस के बरखिलाफ ताखीर करना सख्त गुनाह का बाइस है।
सदके के फवाइद
उस के बाद सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ ने सदके के मौजूअ पर गुफ्तगू शुरूअ करदी। आप ने फरमाया, जो शख्स किसी भूके को खाना खिलाएगा अल्लाह तआला केयामत के दिन उस शख़्स और दोज़ख के दरमियान सात पर्दे हाइल करदेगा। जिन में से हर पर्दे की मोटाई पाँच सौ बरस की राह के बराबर होगी।
झूटी कसम खाने का वबाल
फिर कुछ देर के बाद झूटी कसम से मुतअल्लिक गुफ्तगू
शुरूअ हुई आप ने फरमाया, जो शख़्स झूटी कसम खाता है उस के घर से बरकत उठ जाती है और झूटी कसम खाकर वह अपना घरबार तबाहो बरबाद कर लेता है।..
हिकायत
फिर बगदाद की जामेअ मस्जिद में मौलाना अमादुद्दीन बुख़ारी से सुनी हुई एक हिकायत बयान फरमाई कि एक मरतबा अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलहिस्सलाम को बताया कि ऐ मूसा! मैं ने सातवाँ दोज़ख,हाविया, बनाया है यह सब से ज़ियादा खौफनाक और उस की आग निहायत सियाह और तेज़ है उस में साँप बिच्छू भी बकस्रत हैं वह गंधक के पत्थरों से रोज़ाना तपाया जाता है अगर उस गंधक का एक कत्रा भी दुन्या में आकर पड़ जाए तो तमाम पानी खुश्क होजाए, सब पहाड़ जल जाएं और उस की गर्मी से ज़मीन फट जाए ऐ मूसा! ऐसा अज़ाब दो शख़्सों केलिए तैय्यार किया गया है एक वह जो नमाज नहीं अदा करता और दूसरे वह जो झूटी कसम खाता है ।,,
हिकायत
फिर फरमाया कि अहले हक तो सच्ची कसम खाने से भी डरते हैं और इसी ज़िम्न में एक हिकायत बयान फरमाई कि एक मरतबा ख़्वाजा मुहम्मद अस्लम तूसी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने जो एक पाक बातिन बुजुर्ग थे हालते सुक्र में सच्ची कसम खाली । जब हालते सुक्र दूर हुई और होश में आए तो लोगों से पुछा कि क्या आज मैं ने कसम खा ली है? लोगों ने इस्बात में जवाब दिया। आप फरमाया,आज मेरा नफ्स मुझ पर ऐसा गालिब आगया कि मैं ने सच्ची कसम खा ली इस का मतलब यह है कि कल मैं और भी कस्में खा सकता हूँ क्यूंकि मेरा नफ्स इस का आदी होगया। मैं आज के बाद हमेशा ख़ामोश रहूँगा और किसी सें | कोई कलाम नहीं करूँगा ।
इस वाकेओ के बाद ख़्वाजा मुहम्मद अस्लम तूसी चालीस बरस तक ज़िन्दा रहे लेकिन उन्हों ने किसी शख्स से मुत्नक कोई बात नहीं की। यह सब कुछ उन्हों ने एक सच्ची कसम खाने के कफ्फारे में किया।..
चौथी मज्लिस
दोशंबए मुबारका को सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ की कदमबोसी का शरफ हासिल हुआ उस मज्लिस में ख़्वाजा काकी के अलावा शैख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी, शैख सैफुद्दीन बाखिरज़ी और खाजए अजल्ल शीराज़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम भी मौजूद थे। महब्बत में सदाकत के मौजूअ पर गुफ्तगू शुरूअ हुई।
मुहिब्बे सादिक
महब्बत में सादिक वह है जो दोस्त की तरफ से पहुँचने वाले खुशी व गम और राहतो मुसीबत दोनों खन्दा पेशानी से कुबूल करले ख्वाह दोस्त की तरफ से उस पर मसाइब के पहाड़ टूट पड़ें वह ज़बान से उफ तक न कहे और खुशी से यह तक्लीफें बर्दाश्त करले ।
शैख शहाबुद्दीन सुहरवर्दी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने फरमाया कि, महब्बत में सादिक वह शख्स है कि उस के सर पर हजारों तल्वारें मारी जाएं मगर आलमे शौको इश्तियाक में उसे खबर तक न हो ।,,
फिर ख़्वाजए अजल्ल शीराज़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने फरमाया कि "मौला की दोस्ती में वह शख्स सादिक होता है कि अगर उस के जिस्म का रेज़ा रेज़ा करदिया जाए या आग में जलाकर खाकिस्तर करदिया जाए तब भी दम न मारे।"
ने उस के बाद हज़रत शैख सैफुद्दीन रहमतुल्लाहि तआला अलैह इरशाद फरमाया कि "महब्बत में सादिक वह शख्स होता है कि जिसे हमेशा चोट लगे मगर मुशाहदए दोस्त में उस चोट को भूल जाए और उस पर कोई असर न हो।"
शेखुल इस्लाम हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन चिश्ती कुद्दि स सिररहु ने फरमाया कि "यह बात हज़रत शैख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी में पाई जाती है। इस लिए कि मैं ने "अस्रारुल औलिया में पढ़ा है
महब्बते सादिक पर मुकालमा
एक मरतबा हज़रत राबेआ बस्री, हज़रत ख़्वाजा हसन बररी, हज़रत मालिक बिन दीनार और हज़रत ख्वाजा शफीक बलखी रहमतुल्लाह तआला अलैहिम बस्रा में एक मज्लिस में महवे गुफ्तगू थे और मौजूअ इश्को महब्बत था ।
हज़रत ख्वाजा हसन बस्री ने फरमाया "मौला की दोस्ती में वह शख्स सादिक है जो रंजो गम और दर्दो मुसीबत पर खुशी से सब करे । *
हज़रत राबेआ बस्री ने फरमाया "ख्वाजा! इस से तो खुदी की बू आती है।" फिर हजरत मालिक बिन दीनार ने फरमाया कि "मौला की दोस्ती में सादिक वह है जो दोस्त की तरफ से हर बला व
मुसीबत पर उसी की रज़ाजोई करे और उस पर भी राजी रहे । "
हज़रत राबेआ बस्री ने फरमाया "आशिके सादिक को इस से
भी बेहतर होना चाहिए। *
उस के बाद हज़रत ख़्वाजा शफीक बलखी ने फरमाया कि "मौला की दोस्ती में सादिक वह है कि अगर उस का जरी जरी कर दिया जाए तो भी उफ न करे।"
हज़रत राबेआ बस्री ने फरमाया "मेरे नज़दीक इश्के सादिक यह है कि आशिक को चाहिए जिस कदर रंजो अलम पहुँचें वह मुशाहदए हक में सब भूल जाए मगर उस से कभी गाफिल न हो।" फिर सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज ने फरमाया कि "हम भी इस बात का इकरार करते हैं और शैख सईदुद्दीन ने फरमाया कि "सिदके महब्बत इसी का नाम है।"
कब्रस्तान में कहकहा
फिर हंसी और कहकहा से मुतअल्लिक गुफ्तगू शुरूअ होगई सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ ने इरशाद फरमाया कि खिलखिला कर हंसना गुनाह है अहले सुलूक तो मुस्कुराने से भी परहेज करते हैं और कब्रस्तान में तो बिलकुल ही मना है क्यूँकि वह मकामे इब्रत है। हदीसे पाक में आया है कि जब कोई शख्स कब्रस्तान से गुज़रता है तो मुर्दे कहते हैं कि ऐ अल्लाह के बन्दे अगर तुझे कब्र के अन्दर का हाल मालूम होजाए तो तू सर्द होजाए और तेरा गोश्त पोस्त खौफो दहशत के मारे पानी होकर वह जाए फिर आप ने दर्जे जैल हिकायात बयान फरमाई :
हिकायत
एक मरतबा मैं और शैख औहदुद्दीन किरमानी दौराने सफर किरमान पहुँचे वहाँ हमारी मुलाकात एक ज़ईफुल उम्र बुजुर्ग से हुई वह महज़ हड्डियों का एक ढाँचा थे और सिर्फ साँस की आमदो शुद से उन की ज़िन्दगी का पता चलता था वह हर वक्त जिक्रे इलाही में मशगूल रहते थे और किसी से बात चीत भी बहुत कम करते थे अल्लाह तआला ने उन्हें कुव्वते कश्फ अता फरमाई थी। हमारे हाज़िर होने पर फरमाया :
"ऐ दुर्वेशो! तुम मुझ से मेरी हालत के बारे में पूछना चाहते हो तो सुनो। एक दिन यह आजिज़ एक दोस्त के साथ कब्रस्तान गया हम वहाँ एक कब्र के सरहाने बैठ कर बातें करने लगे। अपने दोस्त की एक बात पर मुझे बे इख़्तियार हंसी आगई। यकायक उसी कब्र से आवाज़ आई "ऐ गाफिल ! एक दिन फिरिश्तए अजल तुझे भी दबोच लेगा और तू हशरातुल अर्द की खुराक बन जाएगा भला तुझको हंसी से क्या काम ?"
यह आजिज़ उसी वक्त अपने दोस्त से रुख़्सत हुआ और इस जगह आकर बैठ गया आज चालीस बरस होने को आए हैं सिवाए रोने और ज़िक्रे इलाही के मेरा कुछ काम नहीं है। उस वाकेओ के बाद शर्म के मारे चालीस साल से मैं ने आस्मान की तरफ निगाह नहीं उठाई और हर वक्त इस खौफ से मैं घुलता रहता हूँ कि कयामत के दिन खुदा को क्या मुंह दिखाऊँगा।" हिकायत
एक मरतबा बगदाद में दरिया के किनारे एक झोंपड़ी में एक बुजुर्ग रहते थे मैं ने वहाँ पहुँच कर सलाम किया उन्हों ने इशारे से और कहा "ऐ दुर्वेश ! मैं ने तकरीबन पचास साल से यह गोशए जवाब देकर बैठने का इशारा किया। कुछ देर के बाद मुखातब हुए तन्हाई अपना रखा है। तुम्हारी तरह मैं ने भी बहुत सफर किए हैं। एक सफर में मैं ने एक दुन्यादार बुजुर्ग को देखा जो खल्के खुदा को सताते थे मैं ने अनदेखी करते हुए नज़र अन्दाज़ कर दिया
और वहाँ से चला आया। गैब से आवाज़ आई ऐ दुर्वेश ! जालिम को अल्लाह से डराकर उसे उस जुल्म से बाज़ रखने की कोशिश करता तो शायद उस की इस्लाह हो जाती और वह उस गुनाह से बच जाता मगर तू ने इस ख़याल से कुछ न कहा कि वह तुझ पर मेहरबानी करता था और कुछ कह देने पर शायद वह ऐसा न करता इस लिए तूने अपनी जाती मस्लिहत केलिए उसे गुनाह में मुब्तला छोड़ दिया। अगर उस
जब से मैं ने यह ग़ैबी आवाज़ सुनी है मारे शर्म के कई साल से इस कुटिया से बाहर नहीं निकला हूँ मुझे यह अंदेशा है कि अगर केयामत में मुझ से इस मुआमले में सुवाल हुआ तो मैं क्या जवाब दूँगा।"
उस के बाद जब शाम का वक़्त हुआ तो दो रोटियाँ और पानी का एक कूज़ा और प्याला उतरा मैं और उस फकीर ने एक साथ इफ्तार किया। जब मैं वहाँ से रवाना हुआ तो उन्हों ने मुसल्ले के नीचे से दो सेब निकाल कर मुझे दिए मैं आदाब बजा लाकर वापस चला आया।
हिकायत
हज़रत ख़्वाजा फतह मूसली रहमतुल्लाहि तआला अलैह एक साहिबे तरीक़त बुजुर्ग थे आठ साल तक खौफे आखिरत से इस कदर रोए कि रुख़्सारों का गोश्त गल गया। उन की वफात के बाद लोगों ने उन को ख्वाब में देखा तो उन का हाल पूछा। ख्वाजा फतह मूसली ने बताया कि जब मुझे बारगाहे इलाही में पेश किया गया तो मुझ से पूछा गया ऐ फतह! तू इस कदर क्यूँ रोया तुझे हमारे गफ्फार होने में शक था। ?"
मैं ने जवाब दिया "मौलाए करीम! तेरे गफ्फार होने पर मेरा ईमान था लेकिन मैं रोज़े हिसाब की दहशत, दमे नज़अ की सख्ती और कब्र की तंगी व तारीकी के खौफ से रोया करता था।" रहमते इलाही जोश में आगई और हुक्म हुआ जा तुझे हम उस खौफ से नजात दी और बख्श दिया । ने
हिकायत
हज़रत ख़्वाजा अता सलमी रहमतुल्लाह तआला अलैह एक
खुदा रसीदा बुजुर्ग थे वह चालीस बरस तक रोते रहे उस दौरान आस्मान की तरफ कभी निगाह भी नहीं उठाई लोगों ने उन से इस का सबब दरयाफ्त किया तो फरमाया "कुछ अपने गुनाहों की शर्म है और कुछ इस वजह से कि कई मज्लिसों में मैं हंसी ठट्टा करता रहा हूँ आस्मान की तरफ निगाह करने की अपने आप में हिम्मत नहीं पाता हूँ और मेरा रोना रोज़े हश्र और कब्र की दहशत. की वजह से है।
हिकायत
मैं अपने पीरो मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारवनी कुद्दि स सिहू के हमराह सफर दौरान एक मरतबा सीविस्तान पहुँचा वहाँ एक दुर्वेश हज़रत सदुद्दीन मुहम्मद अहमद सीविस्तानी रहमतुल्लाह तआला अलैह की ज़ियारत से मुशर्रफ होकर उन की खिदमत में चन्द रोज़ रहा। वह एक साहिबे करामत बुजुर्ग थे। तमाम दुनया से अलग थलग एक सौमआ में तन्हा यादे इलाही में मशगूल रहते थे जो शख्स उन की खिदमत में हाज़िर होता आलमे ग़ैब से कोई न कोई चीज़ उसे लाकर देते और फरमाते इस आजिज़ को दुआए खैर से याद रखना कि कब्र तक अपना ईमान सलामत लेजाए।" जब उन के सामने मौत और कब्र का जिक्र किया जाता तो उन के जिस्म पर लज़ी तारी होजाता और वह बेइख़्तियार रोना शुरूअ करदेते उन की गिया व जारी मुसलसल सात सात दिनों तक जारी रहजी हत्ता कि आँखों से खून बहने लगता। उन का रोना देखकर मुझे भी रोना आता था। जब उस हालत से होश में आते तो फरमाते "अज़ीज़ो! जिसे आलमे नज़अ, फिरिश्तए मौत और रोज़े केयामत याद हो वह भला हंसने, सोने और किसी दूसरे काम से कैसे रग़बत रख सकता है। ऐ अज़ीज़ो! तुम्हें कब्र में सोए हुए लोगों का ज़री बराबर हाल माअलूम होजाए तो खड़े खड़े इस तरह पिघल जाओ जिस तरह नमक पानी में पिघल जाता है।
हिकायत
हज़रत सदुद्दीन मुहम्मद अहमद सीविस्तानी ने भी एक हिकायत यूँ बयान फरमाई कि एक दपआ में बस्रा में एक खुदारसीदा बुजुर्ग के हमराह वहाँ के कब्रस्तान में गया वहाँ हम एक कब के सरहाने बैठ गए। उस कब्र के मुर्दे पर अज़ाब होरहा था। उन बुजुर्ग ने अपनी कुव्वते कश्फ से जूँ ही उस अज़ाब की कैफियत देखी फौरन गिर पड़े और उन की रूह आनन फानन कफसे उन्सुरी से परवाज़ कर गई और चन्द लम्हों में उन का जिस्म पानी होकर बह गया। वह दिन और आज का दिन मैं अज़ाबे कब्र के खौफ से रो रहा हूँ।
ऐ अज़ीज़! दुन्या में मशगूल रहने की बजाए अपने ख़ालिके हकीकी के ज़िक्र में मशगूल रहो और सामाने आखिरत की फिक्र करो। यह फरमाकर दो खुजूरें मुझे इनायत फरमाई और फिर रोने धोने में मस्रूफ होगए।
हज़रत सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ ने मज़कूरा बाला
हिकायात बयान फरमाकर हाय हाय का नाअरा मारा और बे इख़्तियार निहायत दर्द भरे अन्दाज़ में रोने लगे। फिर फरमाया ऐ दुर्वेश ! कसम है मुझे उस जात की जिस के कब्ज़ए कुद्रत में मेरी जान है कि जिस दिन से शैख सद्रुद्दीन मुहम्मद अहमद सीविस्तानी की कैफियत देखी है हर वक़्त खौफे आखिरत और कब्र की हैबत से घुलता रहता हूँ क्यूँकि कुछ जादे राह अपने पास नहीं पाता जिस से दिल को करार हो।
कब्रस्तान में खाने पीने वाला मल्ऊन है
फिर सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ ने फरमाया कि "कब्रस्तान
में (मजबूरी के सिवा) खाना पीना बहुत बड़ा गुनाह है और खाने पीने वाला खौफे खुदा से आरी । इमाम यहया जिन्दौसी रहमतुल्लाह तआला अलैह के रौज़े में यह हदीसे पाक मैं ने लिखी हुई देखी है "मन अ क ल फिल मकाबिरि तआमन औ शराबन फड व मल्ऊनुन व मुनाफिकुन याअनी जिस शख्स ने कब्रस्तान में खाना खाया या पानी पिया वह मलऊन और मुनाफिक है।
हिकायत
फिर यह हिकायत बयान फरमाई कि एक मरतबा हज़रत ख्वाजा हसान बस्री रहमतुल्लाह तआला अलैह का गुजर एक कब्रस्तान से हुआ वहाँ कुछ लोग खाने पीने में मशगूल थे ख्वाजा हसन बस्री ने उन से मुखातब होकर फरमाया "दोस्तो! तुम मुनाफिक हो या मुसलमान कि इस तरह कब्रस्तान में बेमहाबा खा पी रहे हो।"
उन लोगों को ख्वाजा की यह बात बुरी लगी और उन को ईजा पहुँचाना चाहा हजरत ख्वाजा हसन ने फरमाया "दोस्तो ! जो कुछ मैं ने कहा है रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के उस इरशादे गिरामी के मुताबिक कहा है कि कब्रस्तान में खाने पीने वाला मुनाफिक होता है यह इबत की जगह है यहाँ तुम से बेहतर लोग पैवन्दे ज़मीन हैं और उन का गोश्त पोस्त हशरातुल अर्द की खुराक बन गया है यहाँ तुम्हारा जी खाने पीने को कैसे चाहता है।"
ख़्वाजा बस्री के इरशादात सुन कर वह लोग बहुत नादिम हुए और अपनी गलती और गुस्ताखी के लिए मआफी के तलबगार हुए।
हिकायत
फिर सरकारे ख्वाजा ने यह हिकायत बयान फरमाई "रियाहीन" के हवाले से आप ने फरमाया कि एक दफ्आ रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ऐसी जगह से गुज़रे जहाँ कुछ लोग हंसी मज़ाक और खेल कूद कर रहे थे। हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को देखते ही वह लोग अदबो ताअज़ीम केलिए खड़े होगए।
सरकारे रिसालत मआब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन से मुखातब होकर इरशाद फरमाया "भाइयो! तुम मौत, अजाब, पुलसिरात और आखिरत से बेखबर माअलूम होते हो जो गाफिलों की तरह हंसी मज़ाक और खेल कूद में मस्त हो।" हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशादे मुबारक ने उन लोगों के दिलों की मैल धो डाली फिर वह अल्लाह की तरफ ऐसे माइल हुए कि फिर उन लोगों को कभी किसी ने हंसते नहीं देखा।
मुसलमानों पर जुल्म नहीं करना चाहिए
किसी मुसलमान को बिला वजह सताना और उन पर जुल्म करना अहले सुलूक के नज़दीक सब से बड़ा गुनाह है। अल्लह तआला फरमाता है "अल्लजी न यूजू नल मूमिनी न बिगैरि मक्तसबू की नाराज़गी का सबब है। फिर आप ने यह हिकायत बयान फकदेहतमलू बुहतानाव इस्मम्मुबीना' ऐसा करना अल्लाह व रसूल फरमाई कि एक दपआ एक बादशाह ने जुल्म पर कमर बाँध ली और बिला वजह बन्दगाने खुदा को हलाक करना और सताना शुरूअ कर दिया लोग उस के जौरो सितम से सख्त परीशान और नालाँ थे।
यकायक अल्लाह तआला की गैरत जोश में आई और वह जालिम बादशाह आशोबे रोज़गार की वजह से ताजो तख़्त से महरूम हो गया यहाँतक कि लोगों ने उसे इस हालत में देखा कि बगदाद की मस्जिद कीकरी के दरवाज़े पर निहायत ख़स्ता और परीशानहाल खड़ा था। एक शख्स ने उसे पहचान कर इस हालत में पहुँचने का सबब पूछा। उस बद नसीब ने निहायत नदामत के साथ कहा "भाई! मैं बिला वजह लोगों को सताया करता था अल्लाह तआला ने मुझे उसी जुल्मो जौर की सजा दी है जो तुम मुझे इस हाल में देख रहे हो।"
ज़िक्रे इलाही का असर दिल पर
फरमाया कि सुलूक का चौथा मरतबा यह हैं कि जब अल्लाह तअला का नाम या कलाम सुने तो उस का दिल नर्म हो और हैबते इलाही से उस का ईमानो एअतेकाद मज्बुत हो याअनी कलामुल्लाह की तिलावत ईमान में ज़ियादती और इस्तेहकाम का बाइस होनी चाहिए। और अगर ऐसे औकात में भी हंसी मज़ाक और लहवो लइब में मशगूल रहे तो यह गुनाहे कबीरा है जैसा कि खुद अल्लाह अज्ज व जल्ल ने इरशाद फरमाया है "इन्नमल मूमिनूनल्लजी न इजा जकरुल्ला ह वजिलत कुलूबुहुम व इजा तुलियत अलैहिम आयातुहू जादतहुम ईमानौंव्व अला रब्बिहि यतवक्कलून याअनी मोमिने कामिल वह है कि जिस के आगे अल्लाह का जिक्र किया जाए तो उन के कुलूब जगमगा उठें और जब उन के सामने कलामे इलाही की आयात पढ़ी जाएं तो उन के ईमान में इजाफज्ञ हो जाए और वह अपने रब पर ही तवक्कुल करें।"
इमाम जाहिद ने इस इरशादे इलाही की तफ्सीर इस तरह की है कि जो लोग खुदा का जिक्र सुन कर अपना ईमान मोहकम करलें वही मोमिन हैं और जो लोग कलामे इलाही पढ़ते या सुनते वक्त बेतवज्जुही करते हैं वह मुनाफिक हैं।
मुनाफिकों का तीसरा गरोह आगे इरशाद फरमाया कि एक भरतवा रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कुछ लोगों को देखा कि जिक्रे खुदा भी कर रहे हैं और हंसी मज़ाक खेल कूद भी याअनी जिक्रे खुदा से उन के दिल नर्म नहीं हो रहे थे। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन के करीब खड़े होकर इरशाद फरमाया "यह मुनाफिकों का तीसरा गरोह है जिन का दिल अल्लाह के ज़िक्र से भी कोई असर कुबूल नहीं करता और नर्म नहीं होता।
हिकायत
एक मरतबा हज़रत इब्राहीम ख़वास रहमतुल्लाहि तआला अलैह किसी जगह से गुज़र रहे थे कि उन्हों ने कुछ लोगों को जिक्रे खुदा करते सुना। हज़रत ख़्वाजा इब्राहीम खवास औलियाए किबार में से थे और अल्लाह ने उन्हें कल्बे गुदाज़ अता फरमाया था। जिक्रे खुदा सुन कर वज्द में आगए और फर्ते जौको शौक में रक्स करने लगे। तन बदन का कुछ होश न रहा। सात दिन और रात उन पर यही कैफियत तारी रही जब होश आता अल्लाह का नाम लेते और फिर तड़पने फड़कने लगते। सातवें रोज़ जब होश में आए तो वुजू किया और दो रक्अत नमाज़ अदा करने केलिए खड़े होगए जब सर सज्दे में रखा और सुब्हा न रब्बियल आअला कहा तो रूह कफसे इन्सुरी से परवाज़ कर गई सज्दे से सर उठाने की मुहलत ही न मिली। यह हिकायत बयान फरमाते हुए सरकारे ख्वाजा की आँखें अश्क आलूद होगईं और आप ने यह शेर पढ़े। :
आशिक बहवाए दोस्त बेहोश बुवद
वज़ यादे मुहिब्बे वेश मदहोश बुवद
फरदा कि बहश्र खल्क हैरों बाशन्द
नामे तू दुरूने सीना व गोश बुवद
हिकायत
उस के बाद फरमाया कि एक दपआ यह आजिज़ कुछ साहिबे हाल दुर्वेशों के हमराह हज़रत ख्वाजा यूसुफ चिश्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैह की खानकाह में मौजूद था वहाँ मज्लिसे समाअ
मुन्अकिद हुई तो कव्वालों ने यही शेर पढ़े उन्हें सुनकर आजिज और वह दुर्वेश ऐसे मुतअस्सिर हुए कि कुछ होश न रहा। सात रात दिन हम सब तड़पते फड़कते रहे। कव्वाल कुछ और पढ़ना चाहते थे मगर हम उन से बार बार उन्हीं अश्आर की तक्रार करवाते उसी हालत में दुर्वेश हमारी मज्लिस से अचानक गाइब हो गए और उन का ख़िकी वहीं पड़ा रहा अल्लाह ही को उन के हाल की खबर है।
यह हिकायत बयान फरमाकर सरकारे ख्वाजा तिलावते कुरआने पाक में मशगूल हो गए और हाज़िरीने मंज्लिस रुख़्सत हो गए।
पाँचवीं मज्लिस
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि इस मज्लिस में इस हक़ीर के अलावा हज़रत शैख जलालुद्दीन, हज़रत शैख़ अली संजरी, हज़रत शैख मुहम्मद औहद चिश्ती रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम और कुछ दूसरे बुजुर्ग भी मौजूद थे।
पाँच चीज़ों का देखना इबादत
सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज कुद्दि स सिहू ने गुफ्तगू का आगाज़ करते हुए फरमाया कि अहले सुलूक के नज़दीक पाँच चीज़ों की तरफ देखना इबादत है। (1)औलाद को माँ बाप का मुंह देखना (2) कुरआने पाक देखना (3) उलमा की तरफ देखना (4) खानए काअबा की तरफ देखना (5) अपने मुर्शिद को देखना ।
वालिदैन का चेहरा देखना
औलाद को अपने माँ बाप का चेहरा देखना इबादत है हदीसे पाक में आया है कि जो औलाद खुलूस और महब्बत के साथ अल्लाह तआला की रज़ा व खुशनूदी केलिए अपने माँ बाप की जियारत करती है उसे एक हज्जे मक्बूल का सवाब मिलता है और जो फरजन्द अपने वालिदैन के पाँव चूमता है तो हक तआला उस के नामए आअमाल में हज़ार साल की इबादत का सवाब लिख देता है और उसे बख्श देता है।
हिकायत
फिर सरकारे ख़्वाजा ने यह हिकायत बयान फरमाई कि एक शख्स बुरे कामों की वजह से बहुत बदनाम था उस के इन्तेकाल के बाद लोगों ने ख्वाब में उसे जन्नत में हाजियों के गरोह में टहलते हुए देखा और उस से पूछा कि तुझे यह मरतबा क्यूँकर मिल गया हालाँकि दुन्या में तू हमेशा बुरे कामों में मशगूल रहा। जवाब दिया "बेशक मैं बहुत बदकार था. लेकिन अपनी बूढ़ी माँ का मैं बहुत एहतेराम करता था। जब मैं घर से निकलता उस के क़दमों पर सर रख देता उस वक्त मेरी माँ मुझे बहुत दुआएं देतीं कि अल्लहा तआला तुझे बख़्शे और तुझे हज का सवाब अता फरमाए । रब्बे करीम ने मेरी माँ की दुआ कुबूल करली मेरे गुनाह बख़्श दिए और मुझे जन्नत में हाजियों के गरोह में जगह दी।
हिकायत
इसी सिलसिलए बयान में सरकारे ख़्वाजा ने एक दूसरी हिकायत बयान फरमाई कि एक मरतबाहज़रत ख्वाजा बायाज़ीद बुस्तामी रहमतुल्लाहि तआला अलैह से लोगों ने पुछा कि आप को हकाइको मआरिफ का अज़ीम खजाना किस तरह मयस्सर हुआ। आप ने जवाब में इरशाद फरमाया कि बचपन में मैं कुरआने करीम की ताअलीम हासिल करने मस्जिद जाता था। एक दिन जब मेरे उस्ताज़ ने आयत "व बिलवालिदैन इहसाना" (याअनी माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करना चाहिए) के माअना बयान किए तो मुझ पर बहुत असर हुआ। घर पहुँच कर मैं ने अपनी वालिदए मुहतरमा के कदमों पर सर रख दिया और उन से अर्ज़ की कि मेरे हक में दुआ करें कि अल्लाह तआला मुझे आप की कमा हक्कुहू खिदमत करने की तौफीक दे। उन्हों ने रहम खाकर दोगाना बदा करने के बाद मेरे हाथ पकड़ कर किब्लारू होकर निहायत खुशूओं खुजूअ के साथ मेरे हक में दुआ की उसी दुआ की बदौलत मुझे यह
सआदत मयस्सर हुई।
इसी तरह एक दफ्आ सख़्त सर्दी के मौसम में आधी रात के वक्त मेरी वालिदा ने पानी तलब किया मैं फौरन पानी का प्याला भर कर उन के पास गया तो उन की आँख लग गई थी मैं ने
जगाना मुनासिब नही समझा और पानी का प्याला हाथ में लिए उन के सरहाने खड़ा रहा। रात के आखिरी हिस्से में जब वह बेदार हुई तो मुझे इस हाल में खड़ा देखकर हैरान रह गई। यखबस्ता पानी की वजह से मेरा हाथ भी प्याले से चिपक गया था जब उन्हों ने प्याला मेरे हाथ से लिया तो बेइख़्तियार मुझे गोद में ले लिया, प्यार किया और कहा ऐ जाने मादर! तूने मेरे लिए बड़ी तकलीफ उठाई यह कहकर मेरे हक में दुआ की कि अल्लाह तआला तुझे बलन्द मरतबा अता करे, अपना मुकर्रब बनाए और बख़्श दे। अल्लाह तआला ने मेरी वालिदए मुहतरमा की दुआ कुबूल फरमाई और मुझे अपनी बेहदो हिसाब रहमतों से नवाजा।
कुरआने पाक की तरफ देखना
सरकारे ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ कुद्दि स सिर्रहू ने इरशाद फरमाया कि "शर्हे औलिया" में है कि जो शख्स कुरआने पाक की तरफ देखता है या देखकर पढ़ता है उसे दुहरा सवाब अता किया जाता है। एक कुरआन शरीफ पढ़ने का दूसरा कुरआने पाक देखने का और हर हर्फ के बदले दस नेकियाँ अता की जाती हैं। और दस बदियाँ उस के नामए आअमाल से मिटा दी जाती हैं।
उस मौके पर हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने पूछा "हुजूर! कुरआने करीम सफर में हमराह लेजाना जाइज़ है या नहीं ?"
आप ने फरमाया "इब्तेदाए इस्लाम में सरवरे काइनात सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कुरआने पाक सफर में साथ नहीं लेजाते थे कि कहीं काफिरों के हाथ न लग जाए और उस की बेअदबी न हो। मगर बाद में जब इस्लाम फैल गया तो हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कुरआने करीम सफर साथ लेजाने में कोई हरज नहीं समझते थे ।
हिकायत
फिर आप ने यह हिकायत बयान फरमाई कि सुल्तान महमूद गज़नवी कुरआने पाक का बहुत एहतेराम करता था। उन के इन्तेकाल के बाद किसी ने उन को ख्वाब में देखकर पूछा अल्लाह तआला ने आप के साथ क्या सुलूक किया। तो जवाब दिया कि एक दपआ मैं किसी के घर मेहमान था रात को जिस कि
कमरे में मुझे आराम करना था वहाँ एक ताक में कुरआने पाक रखा हुआ था मैं ने दिल में सोचा कि यहाँ कुरआन शरीफ है मैं किस तरह सोऊँगा फिर खयाल आया कि कुरआने पाक किसी और कमरे में रख दिया जाए मगर फिर सोचा कि अपने आराम की खातिर मैं क्यूँ इसे बाहर करूँ मैं कुरआने करीम के एहतेराम में सारी रात बैठा रहा एक पल भी न सोया। अल्लाह तआला को मेरा यह अमल पसन्द आगया और कुरआने करीम के एहतेराम के सदके उस ने मुझे बख़्श दिया ।
कुरआने पाक देखने से बीनाई बढ़ती है
फिर आप ने इरशाद फरमाया कि जो शख़्स कुरआने पाक
देखता है अल्लाह तआला के फज्लो करम से उस की आँखों की रौशनी बढ़ती है और उस की आँखें कभी नहीं दुखतीं। इस सिलसिले में मजीद फरमाया कि एक दपआ एक बुजुर्ग कुरआने करीम की तिलावत कर रहे थे एक नाबीना उन की खिदमत में हाज़िर हुआ और आँखों की बसारत केलिए उन से दुआ की दख्वास्त की। उन बुजुर्ग ने किब्लारू होकर फातिहा पढ़ी और कुरआन शरीफ उठाकर उस शख़्स की आँखों से लगाया जिस की बरकत से उस की आँखें उसी वक़्त रौशन होगई।
हिकायत
सरकारे ख्वाजा ने फरमाया कि मैं ने "जामेउल हिकायात में पढ़ा है कि एक फासिक नौजवान के इन्तेकाल के बाद लोगों ने ख्वाब में उसे जन्नत में देखा। उस से पूछा गया कि तेरी मग्फिरत का क्या सबब है। ? उस ने कहा बेशक मैं बहुत बदकार था लेकिन कुरआने करीम का गायत दर्जी एहतेराम करता था। जहाँ कहीं कुरआन मजीद देखता एहतेराम से खड़ा होजाता। अल्लाह तआला ने मुझे एहतेरामे कुरआन की बदौलत बख्श दिया और यह मरतबा इनायत फरमाया बेशक वह गफूरो रहीम है।
उलमाए किराम की ज़ियारत करना आप ने इरशाद रमाया कि जो शख्स किसी आलिमे दीन की तरफ महब्बत से देखता है तो अल्लाह तआला एक फिरिश्ता पैदा फरमाता है जो केयामत तक उस केलिए बख्शिश की दुआएं माँगता रहता है।
उस के बाद फरमाया कि उलमा की तरफ देखना और उन का एहतेराम करना भी एक इबादत है। जिस शख्स के दिल में उलमा व मशाइख की महब्बत होती है उसे एक हज़ार साल की इबादत का सवाब मिलता है। अगर उसी हालत में फौत होजाए तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में उलमा का दर्जा अता फरमाता है जिस का नाम इल्लिय्यीन है। रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भी उलमा से महब्बत और उन की खिदमत का बड़ा सवाब बयान फरमाया है। "फतावए ज़हीरिया" में है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है। कि जो शख्स उलमा के पास आमदो रफ्त रखे और (कम से कम) सात दिन उन की खिदमत करे तो अल्लाह तआला उस के सारे गुनाह बख्श देता है और सात हज़ार साल की नेकियाँ उस के नामए आअमाल में लिख देता है।
हिकायत
फिर यह हिकायत बयान फरमाई कि पहले जमाने में एक शख्स उलमा व मशाइख से बहुत हसद और नरफरत करता था और उन्हें देख कर मुंह दूसरी तरफ फेर लेता थ। मरने के बाद उसे कब्र में उतारा गया तो उस का मुंह किब्ला से फिर कर दूसरी तरफ होगया लोगों ने हर चन्द उस का मुंह किबला की तरफ फेरने की कोशिश की लेकिन हरबार उस का मुंह दूसरी तरफ फिर जाता था। अचानक ग़ैब से आवाज़ आई "मुसलमानो! इस का मुंह हरगिज़ किबला की सम्त न होगा क्यूँकि यह शख्स अपनी जिन्दगी में उलमा व मशाइख को देख कर उन की तरफ से अपना मुंह फेर लेता था जो शख्स उलमा व मशाइख से मुंह मोड़ता है हम उस से अपनी रहमत और बख्शिश फेर लेते हैं वह रॉदए दरगाह होजाता है और वह केयामत के दिन रीछ की शक्ल में उठाया जाएगा।
खानए काअबा को देखना
सरकारे खाजा ने हदीसे पाक की रौशनी में इरशाद फरमाया कि खानए काअबा की तरफ देखना भी इबादत है। रसूले अकरम
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद इस का सवाब बयान फरमाया है। फरमाते हैं कि जो शख़्स दिली खुलूस और एहतेराम ● साथ खानए काअबा की ज़ियारत करेगा वह इबादत में दाखिल होगा। उस की उस जियारत के एवज़ एक हज़ार साल की इबादत और हज्जे मकबूल का सवाब उस के नामए आअमाल में लिखा जाएगा और उसे औलिया के जुमरे में शुमार किया जाएगा।
पीरो मुर्शिद की ज़ियारत
फिर सरकारे ख़्वाजा ने फरमाया कि पीरो मुर्शिद की ज़ियारत करना और उन की ख़िदमत बजा लाना भी एक बहुत बड़ी इबादत है। मैं ने "माअरिफतुल मुरीदीन में पढ़ा है कि हज़रत ख़्वाजा शैख उस्मान हारवनी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं कि जो शख्स अपने पीर की ख़िदमत दिलो जान से करता है अल्लाह तआला उसे बगैर हिसाब के जन्नत में दाखिल करेगा और उस को मोतियों के हज़ार महल अता करेगा, हज़ार साल की इबादत का सवाब उसे अता करेगा और हज़ार हूरें उस की खिदमत पर मामूर की जाएंगी।
फिर आप ने हाज़िरीने मज्लिस को तलकीन फरमाई कि पीर के इरशादात को निहायत ध्यान से सुनना चाहिए और उन पर अमल करना चाहिए नमाज़, रोज़ा और औरादो वज़ाइफ जो वह बताए उन की पाबन्दी करना लाज़िम है और पीरो मुर्शिद की खिदमत में मुतवातिर हाज़िर होने की कोशिश करनी चाहिए।
हिकयात
फिर सिलसिलए बयान की मनासबत से यह हिकायत बयान फरमाई कि एक जाहिद सौ बरस तक खुदा की इबादत करते रहे। दिन को रोजा रखते और रात को नवाफिल पढ़ते और हर आने जाने वाले को इबादते इलाही बजा लाने की तलकीन व ताकीद में देख कर उन का हाल पूछा। उन्हों ने जवाब दिया कि मेरी रात फरमाते। उन के विसाल के बाद ख़्वाब में लोगों ने उन को जन्नत दिन की इबादत जन्नत में दाखिले का बाइस नहीं हुई बल्कि अल्लाह तआला ने मुझे अपने पीर की खिदमत की बदौलत बख़्शा है
फाइदा
इतना बयान करके सरकारे ख़्वाजा रोने लगे और फरमाया कि केयामत के दिन औलिया, सिद्दीकीन और मशाइखे तरीकत को कब्रों से उठाया जाएगा तो उन के कंधों पर कम्लियाँ पड़ी होंगी हर कम्ली के साथ हज़ारों रेशे लटकते होंगे। उन बुजुर्गों के मुरीद और अकीदतमन्दान उन रेशों को पकड़ कर लटक जाएंगे और उन के साथ पुलसिरात उबूर करके बहिश्त में दाखिल हो जाएंगे। उस के बाद सरकारे ख़्वाजा तिलावते कलामे पाक में मशगूल होगए और मज्लिस बरख्वास्त होगई।
छटी मज्लिस
जुमेरात के दिन कदमबोसी की दौलत नसीब हुई उस मज्लिस में ख़्वाजा कुतुब के अलावा हज़रत शैख मुहम्मद अस्फहानी, हज़रत शैख बुरहानुद्दीन चिश्ती अलैहिमर्रहमह और कुछ दीगर दुर्वेश हाज़िर थे। बगदाद की जामेअ मस्जिद में सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ ने अल्लाह तआला की कुदरते कामिला के बारे में गुफ्तगू शुरूअ की ।
कुदरते खुदावन्दी के अजाइब
फरमाया कि अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से कुछ चीजें ऐसी पैदा की हैं कि अगर इन्सान उन की हकीकत पर गौर करे तो उस की अक्ल जवाब देजाए और वह दीवाना होजाए। मैं ने हजरत ख्वाजा उस्मान हारवनी कुद्दि स सिहू से सुना है कि अल्लाह तआला ने इस जहान के अलावा बीसियों जहान और पैदा किए हैं जो हमारी नज़रों से ओझल हैं उन जहानों में बेशुमार फिरिश्ते हर वक्त कलिमए तैय्यबा ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह की तस्बीह पढ़ते रहते हैं।
असहाबे कहफ को दाअवते ईमान
उस के बाद फरमाया कि एक मरतबा रसूले अकरम
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बारगाहे खुदावन्दी में असहाबे कहफ को देखने की ख्वाहिश जाहिर फरमाई। जवाब आया कि तू दुन्या में उन्हें नहीं देख सकेगा अलबत्ता आखिरत में दिखा दूँगा हाँ अगर उन्हें अपने दीन में लाना चाहता है तो मैं ला दूँगा ।
फिर फरमाया कि अपने अहबाब को एक गुदढ़ी पर बिठाओ। चुनाँचे ऐसा ही किया और वह गुदड़ी अहबाब को लेकर असहाबे कहफ के गार के दरवाज़े पर पहुँची। अहबाब ने असहाबे कहफ को सलाम किया। अल्लाह तआला ने उन्हें ज़िन्दा किया उन्हों ने सलाम का जवाब दिया फिर अहबाब ने उन के सामने दीने इस्लाम पेश किया जो उन्हों ने कुबूल कर लिया। याअनी अल्लाह तआला ने असहाबे कहफ को भी उम्मते मुहम्मदी में से होने का शरफ अता फरमाया ।
तीस साल से ग़ाइब लड़का वापस आ गया
फिर सरकारे ख़्वाजा फरमाया कि कौन सी चीज़ है जो अल्लाह तआला की कुदरत में नही । मर्द को चाहिए कि उस के अहकाम बजा लाने में कमी न करे जो कुछ चाहेगा मिल जाएगा। एक मरतबा मैं अपने शैख ख़्वाजा उस्मान हारवनी रहमतुल्लाहि तआला अलैह की खिदमत में हाज़िर था वहाँ कुछ और दुर्वेश भी बैठे थे कि एक नहीफो नज़ार बूढ़ा शख्स अपने हाथ में असा लिए हुए आया और सलाम किया। शैख उस्मान हारवनी ने खन्दा पेशानी से उठ कर उसे अपने पास जगह दी। उस ने रोते हुए अर्ज की कि मेरा फरज़न्द तीस साल से गाइब है उस की जुदाई मैं मैं दिन रात घुल रहा हूँन उस के मरने की ख़बर है और न जीने की। लिल्लाह दुआ फरमाइए कि मेरा फरज़न्दे गुमगश्ता मुझे मिल जाए। शैख साहब ने मुराकबा किया फिर सर उठाकर हाज़िरीन से फरमाया दुआ करो कि इन का लड़का सहीह सलामत घर आजाए। दुआ ख़त्म करने के बाद फरमाया ऐ जईफ! जाओ तुम्हारा गुमशुदा फरज़नद तुम्हें मिल जाएगा उसे लेकर फिर हमारे पास आना।"
मिली कि तुम्हारा लड़का आगया है। वह खुशी खुशी घर पहुँचा तो जइफ आदाब बजा लाकर वापस होगया। रास्ते में मुबारकबाद देखा कि उस का वह फरज़न्द घर में बैठा है। बूढ़े की कमज़ोर आँखें लड़के को देख कर फर्ते मसर्रत से रौशन होगई और वह बेखुद होगया। उलटे पाँव लड़के को लेकर वह ख़्वाजा साहब की 1 खिदमत में वापस आया और ख्वाजा साहब की कदमबोसी की और अपने लड़के से भी कदमबोसी कराई। हज़रत ने लड़के से पूछ कि तुम कहाँ थे और घर कैसे वापस आए । ? *
लड़के ने कहा मैं समन्दर के बीच देवों की कैद में था कि एक दुर्वेश ने जो आप का हमशक्ल था आकर मेरी जंजीरें काट डाली और मेरी गरदन मज़बूत पकड़ कर कहा कि मेरे पाँव पर पाँव रख और आँखें बन्द कर मैं ने हुक्म की ताअमील की। फिर फरमाया कि आँखें खोल । जब मैं ने आँखें खोलीं तो अपने आप को अपने घर के दरवाजे पर पाया। यह कहकर कुछ और कहना चाहा तो ख्वाजा साहब ने रोक दिया। उस बूढ़े ख्वाजा साहब के कदमों पर सर रख दिया। ख्वाजा गरीब नवाज़ ने फरमाया "देखो! मर्दाने खुदा इतनी कुदरत रखने के बावुजूद आपने आप को पोशीदा रखते हैं।
अंधेरे और उजाले का फिरिश्ता
सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ ने अजाइबे कुदरत का ज़िक्र फरमाते हुए फरमाया कि हज़रत काअब अहबार रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह तआला ने एक ऐसा फिरिश्ता पैदा फरमाया है जिस की बुजुर्गी और हैबत को अल्लाह तआला ही जानता है उस का नाम हाबील है। उस फिरिश्ते ने दोनों हाथ फैला रखे हैं एक मश्रिक में और दूसरा मग्रिब में और कलिमए तैय्यब की तस्बीह पढ़ता रहता है मश्कि वाले हाथ से वह रौशनी देता है और मरिब वाले हाथ से अंधेरा। अगर रौशनी को हाथ से छोड़ दे तो सारा जहाँ तारीक होजाए और कभी दिन न आए। एक तख़्ती लटकी हुई है जिस पर सियाहो सफेद लकीरें खिंची हुई हैं उन्हें कभी ज़ियादा करता है कभी कम। जब ज़ियादा करता है तो रौशनी होजाती है और जब कम करता है तो तारीकी छा जाती है इसी वजह से कभी दिन बड़े होजाते हैं और कभी रातें।
हवा और पानी का फिरिश्ता
उस के बाद उसी मौके पर फरमाया कि अल्लाह तआला ने
एक और फिरिश्ता इस कदर हैबत वाला बनाया है कि उस का
एक हाथ आस्मान में है और दूसरा ज़मीन में। आस्मान वाले हाथ
से हवा पर काबू रखता है और ज़मीन वाले हाथ से पानी पर ।
अगर पानी को हाथ से छोड़ दे तो सारा जहाँ गर्क होजाए और
अगर हवा को छोड़ दे तो तूफाने बाद से तमाम आलम तहो बाला
होजाए।
कोहे काफ का फिरिश्ता
फिर इसी सिलसिलए बयान में फरमाया कि अल्लाह तआला ने कोहे काफ पैदा फरमाया जो इतना बड़ा है कि पूरी दुन्या के गिर्द फैला हुआ है और दुन्या व माफीहा उस के अन्दर है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एक आयत की तफ्सीर में बयान फरमाया है कि अल्लाह तआला ने एक फिरिश्ता पैदा फरमाया है जो उस पहाड़ पर बैठा हुआ है। ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह उस की तस्बीह है उस का नाम करताईल है और वह उस पहाड़ का मुअक्किल है कभी वह हाथ बन्द करता है कभी खोलता है ज़मीन की रगे अल्लाह तआला ने उस के हाथ में दे रखी हैं जब अल्लाह तआला ज़मीन को तंग करना चाहता है तो फिरिश्ते को रगे खींचने का हुक्म देता है जिस से तमाम चश्मे खुश्क होजाते हैं और शादाबियाँ ख़त्म होजाती हैं, पेढ़ पौदे उगना बन्द होजाते हैं। और जब फराखसाली करना चाहता है तो रगे ढीली करने का हुक्म देता है और जब खिलकत को डराना चाहता है रगो को हिलाने का हुक्म देता है जिस से ज़लज़ला आजाता है और ज़मीन तहस नहस होजाती है।
कोहे काफ और उस के पीछे
इसी बयान के तसलसुल में इरशाद फरमाया कि मैं ने शैखुल इस्लाम हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारवनी और शैख सैफुद्दीन बाखिर्जी रहमतुल्लाहि तआला अलैहिमा की जबानी सुना है कि "अस्रारुल आरिफीन में लिखा हुआ है कि अल्लाह तआला ने उस पहाड़ को दुन्या से कई गुना बड़ा बनाया है चुनाँचे उस पहाड़ के पीछे चवालीस जहान और आबाद हैं। हर जहान में उस के चार सौ हिस्से हैं हर एक हिस्सा इस दुन्या से चार गुना । उस पहाड़ के पीछे कोई तारीकी नहीं उजाला ही उजाला है और न ही वहाँ रात होती है वहाँ की ज़मीन सोने की है और वहाँ के रहने वाले फिरिश्ते हैं न शैतान, न बहिश्त न दोज़ख। जिस रोज़ से अल्लाह तआला ने उन्हें पैदा किया है सारे फिरिश्ते कलिमए तैय्यबा ला इला ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह का विर्द कर रहे हैं उन चवालीस जहानों के पीछे हिजाब हैं और उन के पीछे फिर हिजाब हैं जिन की बड़ाई और कसरत अल्लाह तआला ही को माअलूम है।
गाय के सर पर पहाड़
फिर फरमाया कि वह पहाड़ एक गाय के सर पर रखा है जिस की लम्बाई तीस हज़ार साल की राह के बराबर है। गाय खड़ी हुई अल्लाह तआला की हम्दो सना कर रही है उस का सर मश्रिक में और दुम मग्रिब में है ।
हज़रत ख्वाजा उस्मान हारवनी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने कसम खाई कि जिस रोज़ मैं ने यह हिकायत शैख मौदूद चिश्ती से सुनी तो आप ने मुराक़बा किया वह और एक दुर्वेश जो हाज़िरे खिदमत थे दोनों गाइब होगए थोड़ी देर के बाद फिर हाज़िर होगए उस दुर्वेश ने कसम खाकर कहा कि मैं और मौदूद चिश्ती दोनों उस पहाड़ के पास से होकर आ रहे हैं। और चवालीस जहान जो ख़्वाजा साहब ने बयान किए है वाकई उन में ज़री बराबर फर्क नहीं। ठीक उसी तरह हैं जैसा कि आप ने बयान फरमाया। इस मुकाशफे का सबब यह था कि मुझे खुद शक हुआ और आप ने कश्फ से मेरा शक भाँप लिया था।
सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ ने फरमाया कि दुर्वेश में इतनी कुव्वते बातिनी तो होनी ही चाहिए कि अगर सुनने वाला हिकायते आलिया में शक करे तो उसे मुशाहदा करादें और करामत की कुव्वत से उसे काइल करलें ।
खानए काअबा दिखा दिया
बतौरे तहदीसे नेअमत सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज ने खुद अपना एक वाकआ बयान फरमाया कि एक दफा मैं सफर करते हुए समरकन्द पहुंचा हज़रत इमाम अबूल्लैस समरकन्दी रहमतुल्लाह तआला अलैह के मकान के करीब एक बुजुर्ग एक
मस्जिद ताअमीर करवा रहे । एक दानिशमन्द खड़ा कह रहा था कि मेहराब इस तरफ रखो क्यूँकि काअबा इसी तरफ है। मैं ने कहा कि उस तरफ नहीं इसी तरफ जिस रुख की मस्जिद ताअमीर हो रही है। वह अपनी बात पर अड़ा रहा और किसी तरह मेरी बात तसलीम ही नहीं कर रहा था। मैं ने उस की गरदन पकड़कर कहा कि देखो काअबा किस तरफ है जिधर तुम कह रहे हो उधर या जिधर मैं कह रहा हूँ उधर। वह बयक आवाज़ चिल्ला उठा कि आप सहीह कह रहे थे। क्यूँकि उस ने अपनी आँखों से ख़ानए काअबा देख लिया था।
सातवीं मज्लिस
बुध के दिन मुलाकात का शरफ हासिल हुआ। उस मज्लिस में ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह के अलावा कुछ हुज्जाज भी सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ की खिदमत में हाजिर थे। गुफ्तगू सूरए फातिहा के फज़ाइलो बरकात से मुतअल्लिक शुरूअ हुई।
सूरए फातिहा के फज़ाइल
आप ने इरशाद फरमाया कि मैं ने एक जगह पढ़ा है कि हाजत पूरी करने केलिए सूरए फातिहा कस्रत से पढ़नी चाहिए हदीस शरीफ में है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलहि वसल्लम ने फरमाया है कि जिसे कोई मुश्किल दरपेश हो वह हसबे जैल तरीके पर सूरए फातिहा पढ़े। बिस्मिल्ला हिर्रहमा को अलहम्दु के लाभ से मिला कर पढ़े और आखिर में हर बार निर्रहीमिल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन याअनी अर्रहीम की भीम तीन मरतबा आमीन कहे। अल्लाह तआला उस की हर मुश्किल को हल फरमादेगा।
उस के बाद इरशाद फरमाया कि एक मरतबा रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम सहाबए किराम रदियल्लाहु तआला अन्हुम के दरमियान जल्वा फरमा थे आप ने सहाबए • किराम को बताया कि एक दिन जिबरईले अमीन अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और कहा या रसूलल्लाह ! खुदावन्दे करीम फरमाता है। के मैं ने एक सूरह आप पर ऐसी नाज़िल की है कि अगर वह तौरैत में होती तो बनी इस्राईल में से कोई यहूदी न होता, अगर ज़बूर में होती तो हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की उम्मत में से कोई मुगन्नी (गाने वाला) न बनता और अगर इंजील में होती तो ईसा (अलैहिस्सलाम) की उम्मत में से कोई शख्स ईसाई न होता। यह सूरह कुरआने मजीद में इस लिए नाज़िल की गई है कि इस की बरकत से तुम्हारी उम्मत केयामत के दिन खुदाए तआला के सामने सुर्ख़रू हो। इस सूरह की अज़मत और खुसूसियत यह है कि अगर तमाम रूए ज़मीन के दरियाओं का पानी रौशनाई बन जाए और रूए ज़मीन के तमाम दरखतों के कलम बना
दिए जाएं तो भी इस सूरह के फजाइलो बरकात नहीं लिखे जासकते। हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पुछा "वह कौन सी सूरह है।" अर्ज़ की वह सूरए फातिहा है।
फिर सरकारे ख़्वाजा गरीब नवाज़ ने फरमाया कि सूरए फातिहा तमाम अमराज़ की दवा है जो शख्स किसी लाइलाज मरज में मुब्तला हो तो सुन्नत और फर्ज़ नमाज़ों के दरमियान इक्तालीस मरतबा सूरए फातिहा पढ़कर उस पर दम कर दिया जाए तो अल्लाह तआला उसे भी शिफा अता फरमादेगा। रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है। "अलफातिहतु शिफाउम मिन कुल्लि दाइन" याअनी सूरए फातिहा हर मरज की दवा और शिफा है।
हिकायत
एक मरतबा बगदाद का मशहूर खलीफा हारूनुर्रशीद किसी लाइलाज बीमारी में मुब्तला होगया। बुहतेरे इलाज के • शिफा नहीं मिल रही थी उसी परीशानी और तकलीफ में दो साल गुजर गए। बिल आखिर अपने एक वज़ीर को हज़रत फुज़ैल इब्ने बावुजूद उसे अयाज रहमतुल्लाह तआला अलैह की खिदमत में भेज कर कहलाया कि मैं इस मूजी बीमारी से तंग आगया हूँ कोई इलाज कारगर नहीं हो रहा है आप दुआ फरमादें कि अल्लाह तआला मुझे इस मरज़ से शिफा अता फरमाए। हज़रत ख्वाजा फुज़ैल बिन अयाज़ को खलीफा के हाल पर रहम आगया और आप चलकर खुद खलीफा के पास तशरीफ लाए और अपना दस्ते मुबारक उस के जिस्म पर रख कर इक्तालीस मरतबा सूरए फातिहा पढ़ी और उस के चेहरे पर दम कर दिया। उसी वक़्त खलीफाको आराम मिल गया और पूरी तरह सेहतमन्द होगया।
बद एअतेक़ादी का नतीजा
उस के बाद हजरत ख्वाजा गरीब नवाज ने फरमाया कि
बद एअतेकादी और बेयकीनी से हर हाल में परहेज़ करना चाहिए हर कामं में इखलास और अकीदे की दुरुस्तगी ज़रूरी है। एक मरतबा हज़रत अली कर्रमल्लाहु तआला वज्हहुल करीम ने एक मरीज़ पर सूरए फातिहा पढ़कर दम किया तो उसे शिफा होगई। उस का एक जानने वाला उस की अयादत केलिए आया और उसे सेहतमन्द देख कर पूछा कि तुम इतनी जल्दी कैसे शिफायाब होगए। उस शख़्स ने जवाब दिया कि हज़रत अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन्हु ने सूरए फातिहा पढ़कर मुझ पर दम किया तो अल्लाह तआला ने फौरन मुझे शिफा अता फरमादी उस की अयादत केलिए आने वाले को यकीन न आया और उस के दिल में बदअक़ीदगी पैदा होगई। अल्लाह की कुदरत से उसे फौरन वही बीमारी लाहिक होगई जो उस के दोस्त को थी चुनाँचे वह अपनी बदअकीदगी की वजह से उसी बीमारी में मर गया।
कुरआन पर और अल्लाह तआला की अता पर हर मुसलमान को यकीनो एअतेमाद रखना चाहिए वह तो कुरआन और सूरए फातिहा की बात है अल्लाह तआला ने बाज़ हज़रात की जबान और हाथों में वह तासीर अता फरमाई है। कि वह बगैर कुछ पढ़े दम करदें या सिर्फ अपना हाथ फेर दें तब भी बीमारियों से नजात मिल जाती है।
सूरए फातिहा के सात नाम
कि अल्लाह तआला ने कुरआने पाक की और सूरतों का तो एक उस के बाद सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज ने इरशाद फरमाया एक ही नाम रखा है मगर सूरए फातिहा के सात नाम रखे हैं जो दर्जे जैल हैं।
(1) फातििहतुल किताब (2) सब्डल मसानी (3)उम्मुल किताब (4) उम्मुल कुरआन (5) सूरए मग्फिरत (6) सूरए रहमत (7) और सूरतुस्सानिया या सूरतुल कंज ।
सात हुरूफ से खाली
इस सूरह में दर्जे जैल सात हुरूफ नहीं आए हैं सा, जीम, जा(जे), शीन, जा (जो), फा, और ख़ा। उस की वजह यह है कि : 1-सा "सुबूर" का पहला हर्फ है जिस के माअना हलाकत के हैं। याअनी इस सूरत का पढ़ने वाला सुबूर (हलाकत) से महफूज़ रहेगा ।
2 - जीम "जहन्नम" का पहला हर्फ है। इस सूरह का पढ़ने वाला जहन्नम और उस के अज़ाब से महफूज़ रहेगा। 3-ज़ा (जे) "ज़क्कूम" का पहला हर्फ है। याअनी इस सूरह की तिलावत करने वाला ज़क्कूम (थोहर जो जहन्नमियों की खूराक
होगी) से दूर रहेगा। 4-शीन 'शकावत' का पहला हर्फ शकावत (बदबख्ती से पाक रहेगा। । इस सूरह का पढ़ने वाला
5-जा (जो) "जुल्मत" का पहला हर्फ है। इस सूरह का पढ़ने वाला ज़ुल्मत में नहीं पड़ेगा। 6-फा "फिराक' का पहला हर्फ है। इस सूरह की तिलावत करने
वाला फिराक (जुदाई) की मुसीबत से महफूज रहेगा। 7-खा खौफ' का पहला हर्फ है। इस सूरह का विर्द करने वाला किसी तरह के खौफ में मुब्तला नहीं होगा।
सात आयतों की हिक्मत
इमाम नासिर रहमतुल्लाह तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं। कि इस सूरह में सात आयतें हैं और इन्सान के जिस्म में बड़े आअज़ा भी सात अदद और दोजख के तकात भी सात हैं लिहाजा इस सूरह की बकस्रत तिलावत करने वाले के सातों आअजा जहन्नम के सातों तब्कात के अजाब से महफूज रहेंगे ।
फिर फरमाया कि मशाइखे किबार और अहले सुलूक तहरीर फरमाते हैं कि इस सूरह में एक सौ चौबीस हुरूफ हैं और अंबिया की तादाद एक लाख चौबीस हजार। गोया हर हर्फ के बदले एक हज़ार पैगम्बरों का सवाब इस के पढ़ने वाले के नामए आमाल में लिखा जाएगा
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