मुक़द्दस ताअलीमात,Teachings of Khwaja Moinuddin Chishti (Part 1)
सुल्तानुल हिन्द, ख्वाजए ख़्वाजगान सैय्यिदुना सरकारे खाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी कुद्दि स सिर्रहू ने अपने अखलाको अत्वार, हुस्ने किरदार और इल्मी व रूहानी तस्नीफात के अलावा अपने मुरीदों और मोअतकिदों के साथ नशिसतों में शीरीनिये गुफ्तार और इल्मी दीनी जवाहिर रेज़ों के ज़रीआ जो तबलीगे दीन व तरवीजे सुन्नत के तअल्लुक से कारहाए नुमायाँ अन्जाम दिए हैं वह तारीख के सफ्हात पर चाँद, सूरज और सितारे बन कर आज भी अहले ईमान के दिलों को रौशनी व ताबनाकी अता कर रहे हैं।
आप की ऐसी ही चन्द तबलीगी नशिस्तों की गुफ्तगू और कलिमाते खैर जिन्हें आम तौर पर, मलफूजात, के नाम से जाना जाता है। आप के अज़ीज़तरीन मुरीदो खलीफा हज़रत कुतबुद्दीन बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने इकट्ठा करके दलीलुल आरिफीन, नामी किताब में महफूज़ कर दिया है।
जिस के मुतालओ से पता चलता है कि सरकारे ख्वाजा ने अपना तबलीगी व इस्लाही मिशन किस खुश उस्लूबी के साथ पूरा किया है। आप के मुक़द्दस लबों और कलम की नोक पर हमेशा कुरआन, हदीस और अक्वालो किरदारे औलियाए किराम का ही ज़िक्र होता और मसाइले शरईय्या से लोगों को आगाह फरमाते रहते। उस के अलावा फुजूल बातों का आप के यहाँ कोई गुजर न था। आप के उन मलफूज़ात के मुतालआ से आज भी दर्जे इस्लाह
लिया जा सकता है। जैल में उन मल्फजात के कुछ इक्तेबासात उर्दू जबान में पेश किए जारहे हैं कि अस्ल किताब तो फारसी ज़बान में है।
पहली मज्लिस,
A Beautiful Teachings of Khwaja Moinuddin Chishti, मुरत्तिबे किताबे, दलीलुल आरिफीन, हज़रत ख़्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं कि ...पाँचवें माह 514 हि0 को इमाम अबुल्लैस समरकन्दी रहमतुल्लाहि तआला अलैह को मस्जिद वाकेअ बग़दाद शरीफ में हुजूर सैय्यिदुना ख़्वाजा ग़रीब नवाज की कदमबोसी का शरफ इस दुर्वेशे नहीफ को हासिल हुआ और फकीर को शरफे बैअत से मुशर्रफ फरमाया और चहारतरकी कुलाह मेरे सर पर रखा । (फल्हम्दुलिल्लाहि अला जालिक)
उस दिन उस मज्लिस में शैख शहाबुद्दीन मुहम्मद सुहरावर्दी, शैख दाऊद किरमानी, शैख बुरहान मुहम्मद चिश्ती और शैख ताजुद्दीन मुहम्मद सफाहानी (रहमतुल्लाहि तआला अलैहिम) मौजूद थे और नमाज़ से मुतअल्लिक गुफ्तगू हो रही थी।
नमाज़ कुर्बे खुदावन्दी का ज़रीआ
आप ने फरमाया कि सिर्फ नमाज़ ही ऐसी इबादत है जिस के ज़रीआ लोग बारगाहे रब्बुल इज़्ज़त से करीब हो सकते हैं इस लिए कि नमाज़ मोमिन की मेअराज है जैसा कि हदीस शरीफ में आया है, अस्सलातु मेअराजुल मोमिन,, हर मकाम में नमाज ही से नूर हासिल होता है.
और नमाज ही बन्दे को खुदा से मिलाती है 1 नमाज़ एक राज़ है जो बन्दा अपने खालिकों मालिक से कहता है! वही कुर्बे इलाही पा सकता है जो इस राज़ को राज़ रखने के लाइक हो और यह राज़ भी नमाज़ के सिवा किसी और तरीके से हासिल नहीं किया जासकता। हदीस शरीफ में आया है कि .. अलमुसल्लियो युनाजी रब्बहू,, याअनी नमाज़ अदा करने वाला अपने रब से राज बयान करता है।
पीर की ख़िदमतो इताअत की बरकतें
बाद अज़ाँ मुझ से मुखातब होकर फरमाया कि जब मैं शैखुल
इस्लाम सुल्तानुल मशाइख हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारवनी नव्वरल्लाहु मरकरहू का मुरीद हुआ तो मुसलसल 22 बरस तक उन की खिदमत में लगा रहा एक लम्हे को भी आराम नहीं किया न दिन देखा न रात। हजरत कहीं सफर पर जाते तो भी मैं हमराह होता और आप का बिस्तर और दीगर सामान सर पर उठा कर चलता और आप का हर हुक्म बसद शौक बजा लाता। हज़रत ने मेरी ख़िदमतो इताअत से खुश होकर मुझे वह नेअमतें अता फरमाई जो हदे बयान से बाहर हैं गरजः
हर कि खिदमत कर्द ऊ मख्दूम शुद
मुरीद को चाहिए कि मुर्शिद के अहकाम की पूरी पूरी ताअमील करे। जिन आअमालो वज़ाइफ की उसे ताअलीम दी जाए उन को हिर्ज़े जाँ बनाले तभी वह मन्जिले मक्सूद तक पहुँच सकेगा। क्यूँकि पीरे कामिल मुरीद को जो तल्कीन करता है वह मुरीद के फायदे ही केलिए होती है। मेरे भाई शैख शहाबुद्दीन मुहम्मद सुहरावर्दी भी इसी तरीके पर अमलपैरा हुए और दस बरस तक अपने मुर्शिद की खिदमत में दिन रात लगे रहे सफर में उन का सामान अपने सर पर उठाए फिरते और फिर सफरे हज से वापसी पर इसी खिदमत की बदौलत मरतबए कमाल तक पहुँचे और दीगर नेअमतों से बहरावर हुए।
बख़शिशे कोनैन अज़ शेख़ेन शुद दरबाबे तू
बादशाही याफ़्ता अज़ बादशाहाने जहाँ
ममलुकते दीनो दुनिया गुशताऐ मुस्लिम बर तराँ
आलमे कुन गशतऐ अक़ता तू ऐ शाहजहाँ ।
दो फिरिश्तों का नुजूल
इमाम ख़्वाजा अबुल्लैस समरकन्दी रहमतुल्लाहि तआला अलैह • जो फिक्ह में इमामे वक़्त थे अपनी तफ्सीर की किताब,तंबीह, में लिखते हैं कि हर रोज दो फिरिश्ते आस्मान से जमीन पर उतरते हैं एक काअबे की छत पर खड़ा होकर पुकारता है : ..ऐ जिनो और इन्सानो! सुन लो कि जो शख़्स अल्लाह तआला की तरफ से आइद करदा फराइज़ से गफलत बरतता है वह उस की हिमायतो पनाह से महरूम होजाता है।
1.. और दूसरा फिरिश्ता रसूले कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रौज़ए अतहर की छत पर (याअनी मस्जिद नबवी की
छत पर खड़ा होकर पुकारता है कि : ऐ लोगो! सुन लो कि जो शख़्स रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नते अदा न करे उस को आप की शफाअत नसीब न होगी ।,,
उंग्लियों का खिलाल
फिर फरमाया कि :
मैं और ख़्वाजए अजल्ल शीराजी एक जगह बैठे थे कि मरिब की नमाज का वक्त आगया । ख्वाजए अजल्ल शीराजी ने ताजा वुजू किया लेकिन उंग्लियों में खिलाल करना भूल गए यकायक ग़ैब से आवाज़ आई ऐ ख्वाजए अजल्ल! तुम तो हमारे महबूब मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की दोस्ती का दावा करते हो और उन की सुन्नत को तर्क करते हो।
ख्वाजए अजल्ल ने यह आवाज़ सुनकर कसम खा ली कि इन्शाअल्लाह मरते दम तक मैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की कोई सुन्नत तर्क नहीं करूँगा ।,,
चुनांचे ख़्वाजए अजल्ल फराइज़ के अलावा सुन्नतों की पाबन्दी का खास इल्तेज़ाम फरमाते थे और फिर जब भी इन्हें एकबार का सहव याद आजाता तो परीशान होजाते। एक दिन उसी हालत में आप ने मुझ से फरमाया कि, जिस रोज़ उंग्लियों का खिलाल करना ।,, मुझ से फौत हुआ मुझे यही ख़याल सताता है कि केयामत के दिन मैं अपने आका व मौला को क्या मुंह दिखाऊँगा ।
आअजाए वुजू का तीन बार धोना
फिर इरशाद फरमाया कि किताब सलाते मस्ऊदी में हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी यह हदीस दर्ज है कि नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया है। कि, वुजू में हर अज्व का तीन बार धोना मेरी और अगले पैग़म्बरों की सुन्नत है इस ताअदाद से ज़ियादा करना सितम है ।...
एक बार हज़रत ख़्वाजा फुजेल इब्ने अयाज़ रहमतुल्लाहि तआला अलैह वुजू के वक्त तीन बार हाथ धोना भूल गए और दोबार ही धोकर वुजू से फारिग हो गए और नमाज़ भी अदा कर ली। रात को ख्वाब में रसूले अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की जियारत हुई। आप फरमा रहे थे, फुजैल! हैरत की बात है कि तुम ने नाकिस वुजू किया।..
हज़रत ख्वाजा फुजैल लरजते काँपते ख़्वाब से बेदार हुएफौरन ताज़ा वुजु किया और नमाज अदा की नीज़ अपने सहव के कफ्फारे में एक बरस तक पाँच सौ रक्अत रोज़ाना अदा करते थे।
बावजू सोने के फवाइद
आप ने फरमाया कि, जो शख्स रात को बावुजू सोता है तो फिरिश्तों को हुक्म होता है कि जब तक वह बेदार न हो उस के सरहाने खड़े होकर उस के हक में दुआ करते रहें कि ऐ परवरदिगार! अपने इस बन्दे पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा कि यह नेकी और तहारत के साथ सोया है ।..
फिर उसी महफिल में इरशाद फरमाया कि, अल्लाह का कोई नेक बन्दा अगर बावुजू सो जाए तो फिरिश्ते उस की रूह को अर्श के नीचे लेजाते हैं जहाँ उसे बारगाहे इलाही से खिल्अते फाखिरा अता होता है और फिरिश्ते उसे वापस लेआते हैं। और जो शख्स बेतहारत सोता है उस की रूह को आस्मान से ही वापस भेज दिया जाता है।..
दाएं और बाएं हाथ के काम
फिर एक हदीसे पाक बयान फरमाते हुए इरशाद फरमाया कि ... हुजूर नबिय्ये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है,, अलयमीनु लिल्वज्हि वल्यसार लिल्मिक्अदि,, याअनी दाहिना हाथ मुंह धोने और खाना खाने केलिए है और बायाँ हाथ इसितन्जा करने केलिए है।
मस्जिद में बैल
फिर जबाने फैज़तर्जुमान से इरशाद फरमाया कि आदमी जब मस्जिद में दाखिल हो तो पहले अपना दाहिना पाँव मस्जिद के अन्दर रखे और मस्जिद से बाहर निकलते वक़्त बायाँ पाँव पहले बाहर निकाले यह हुजूर सललल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की सुन्नत है। एक मरतबा हज़रत ख़्वाजा सुफ्यान सौरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह मस्जिद में आए और भूल कर पहले बायाँ पाँव सुन्नत मस्जिद में रख दिया उसी वक़्त गैब से आवाज़ आई, सौर,, (याअनी बैल) ख़ानए खुदा में इस तरह बेअदबी से घुस आता है। उसी रोज़ से लोग आप को सुफ्यान सौरी कहने लगे।
आरिफ बिल्लाह
फिर आरिफों से मुतअलिलक गुफ्तगू शुरूअ हुई आप फरमाया कि.., आरिफ उस शख़्स को कहते हैं जो तमाम जहान को जानता हो और अपनी अक्ल से किसी चीज़ के लाखों माअना बयान कर सकता हो, महब्बत की तमाम बारीकियों का जवाब देसकता हो, हरवक्त वह बहरे महब्बत में डूबता और उभरता रहे ताकि अस्रारे इलाही व अनवारे खुदावन्दी के मोती निकाल कर दीदावर जौहरियों को पेश करता रहे ऐसा शख्स बेशक आरिफ बिल्लाह है।,,
फिर फरमाया, आरिफ वह है जो हर वक़्त इश्के इलाही में मस्त रहे उठते बैठते सोते जागते हर वक्त अपने परवरदिगार का जिक्र करता रहे लम्हा भर भी उस की याद से गाफिल न हो हर लम्हा खालिको मालिक के हिजाबे अज़मत के गिर्द तवाफ करता रहे ।..
नमाज़े फज्र के बाद मुसल्ले पर बैठा रहना
फिर फरमाया कि, अहले इश्को माअरिफत फज्र की नमाज़ अदा करके आफताब तुलूअ होने तक अपनी जाएनमाज पर ही बैठ कर ज़िक्रे हक करता रहे ताकि उसे खुदा की बारगाह में कुर्बो मकबूलियत हासिल हो और अनवारे इलाही की तजल्ली उन पर लम्हा लम्हा बरसती रहे। ऐसे शख़्स केलिए एक फिरिश्ते को हुक्म होता है कि वह जब तक मुसल्ले पर से न उठे उस के पास खड़ा रहकर उस के हक में खुदा से मग्फिरत की दुआ करता रहे।,,
इब्लीसे लईन को मायूसी
मजीद इरशाद फरमाया कि हजरत ख्वाजा जुनैद बगदादी कुद्दिस सिर्रहू ने अपनी किताब, उम्दा,, में तहरीर फरमाया है कि एक रोज़ रसूले कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इब्लीसे लईन को बहुत मायूस और गमगीन देखा तो आप ने उस से इस का सबब दर्यापत फरमायातो कहने लगा कि मेरी मायूसी और रंजो गम का सबब आप की उम्मत के चार आ हैं ।
(1) पहला यह कि जो लोग अजान सुनकर उस का जवाब देने में मशगूल हो जाते हैं अल्लाह तआला उन के गुनाह बख़्श देता
(2) दूसरा यह कि जो लोग राहे हक में नाअरए तकबीर लगाकर मैदाने जिहाद में कूद पड़ते हैं तो अल्लाह तआला उन गाज़ियों को बल्कि उन के घोड़ों तक को बख़्श देता है।
(3) तीसरा यह कि जो लोग रिज़्के हलाल पर कनाअत करते हैं उसी से खुद खाते हैं औरों को भी खिलाते हैं तो अल्लाह तआला उन के गुनाह मआफ कर देता है। (4) चौथा यह कि जो अशखास नमाज़े फज अदा करने के बाद
अपनी जाए नमाज़ पर बैठ कर जिक्रे इलाही में मशगूल रहते हैं और सूरज निकलने पर नमाज़े इश्राक पढ़ कर अपनी जगह से हटते हैं तो अल्लाह तआला उन्हें और उन के रिश्तेदारों को बख़्श देता है।
आरिफ की मन्जिल
उसी मौके पर सरकारे ख्वाजा गरीब नवाज़ कुद्दि स सिर्रहू ने आरिफाने इलाही से मुतअल्लिक इरशाद फरमाया कि आरिफ एक कदम में अर्श से गुज़र कर हिजाबे अज़मत से होते हुए हिजाबे किब्रिया तक पहुँच जाते हैं और दूसरे ही क़दम वहाँ से वापस आजाते हैं फिर ख्वाजा साहब ने आबदीदा होकर फरमाया कि आरिफ का सब से कम्तर दर्जा यह है लेकिन मर्दाने कामिल का दर्जा अल्लाह तआला ही बेहतर जानता है कि वह कहाँ तक पहुँचते हैं और कब वापस आते हैं ।,,